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मदनलाल ढींगरा जी के बलिदान दिवस पर शत् नमन् कर रहे है – चौधरण अंजली आर्या

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मदनलाल ढींगरा जी को उनके 111वे बलिदान दिवस पर देश के सभी वीर योद्धा और क्षत्राणी वीरांगनाऐ शत् शत् नमन् कर रहे है – चौधरण अंजली आर्या

सुर्या बुलेटिन(ग़ाज़ियाबाद) मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर, 1883 एक हिंदू खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता राय साहब दित्तामल था वे एक मशहूर और धनी सिविल सर्जन थे। घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी और शिक्षा के लिहाज से भी उनकी स्थिति बेहद मजबूत थी। मदनलाल ढींगरा का परिवार अंग्रेजी हुकूमत की तारीफ करता था पर मदनलाल को यह पसंद नहीं था। जब मदनलाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कॉलेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया। मदनलाल को अपना खर्चा चलाने के लिए क्लर्क, तांगा-चालक और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में भी काम करना पड़ा। वहां उन्होंने एक यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहां से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुंबई में भी काम किया। अपने बड़े भाई की सलाह पर वे सन् 1906 में उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैण्ड गए जहां यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन (University College, London) में यांत्रिक प्रौद्योगिकी (Mechanical Engineering) में प्रवेश लिया। इसके लिये उन्हें उनके बड़े भाई एवं इंग्लैण्ड के कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से आर्थिक मदद मिली। मदनलाल और वीर सावरकर इंडिया हाउस नामक एक संगठन में, जो उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र था, वहां मदनलाल ढींगरा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्णवर्मा के सम्पर्क में आए। उन दिनों सावरकर जी बम बनाने और अन्य शस्त्रों को हासिल करने की कोशिशें कर रहे थे। सावरकर जी मदनलाल की क्रांतिकारी भावना और उनकी इच्छाशक्ति से बहुत प्रभावित हुए। सावरकर ने ही मदनलाल को अभिनव भारत मण्डल का सदस्य बनवाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। इसके बाद मदनलाल, वीर सावरकर के साथ मिलकर काम करने लगे। कई लोग मानते हैं कि उन्होंने वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न को भी मारने की कोशिश की थी पर वह कामयाब नहीं हो पाए थे। इसके बाद सावरकर जी ने मदनलाल को साथ लेकर कर्ज़न वाईली को मारने की योजना बनाई और मदनलाल को साफ कह दिया गया कि इस बार किसी भी हाल में सफल होना है। मदनलाल द्वारा कर्ज़न वाईली ( Curzon Wyllie) की हत्या 01 जुलाई, 1909 की शाम को उस समय पर की जब इण्डियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकट्ठे हुए। इसमें कर्जन वायली भी शामिल थे। इसी दौरान मदनलाल कर्ज़न वाईली से कुछ खास बात करने के बहाने उनके समीप पहुंचे और उन्हें गोली मार दी। मदन लाल के हाथों कर्जन वायली के साथ उनको बचाने आए पारसी डॉक्टर कावसजी लालकाका की भी मौत हो गई। मदनलाल ने मौके से भागने की जगह आत्म-हत्या का विचार किया पर इससे पहले ही उन्हें पकड़ लिया गया। कर्जन वाईली और पारसी डॉक्टर कावसजी लालकाका की हत्या के आरोप में उन पर 23 जुलाई,1909 को अभियोग चलाया गया। अंत में 17 अगस्त,1909 को उन्हें फांसी दे दी गई। यह वही जेल थी जहां शहीद उधमसिंह को भी फांसी दी गई थी। देश अपने शूरवीर क्रांतिकारियों पर हमेशा से गर्वित रहा है और आगे भी रहेगा। देश में आज लोग उधमसिंह और मदनलाल ढींगरा जैसे वीरों को भूल जरूर गए हैं लेकिन उनकी उपलब्धियों और देशभक्ति की भावना को चाहकर भी भुलाया नहीं जा सकता। आजादी की लड़ाई में ये एक ऐसे सिपाही थे जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए पर वह आजाद भारत में वह स्थान प्राप्त नहीं कर पाए जिसके वो असली हकदार थे। देश आज इस युवा क्रांतिकारी को याद कर रहा है। भारत देश सदैव उनकी वीरता और निर्भीकता के लिए कृतज्ञ रहेगा।

लेखिका
चौधरण अंजली आर्या

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