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खिसियाया पाकिस्तान कितना खतरनाक!

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सुर्या बुलेटिन(गाजियाबाद)  पिछले एक वर्ष का समय पाकिस्तान के लिए अत्यधिक उथल-पुथल वाला समय रहा है। 2018 में वहां सम्पन्न हुए आम चुनावों में इमरान खान को विजय प्राप्त हुई, परन्तु चुनाव प्रणाली और सेना की भूमिका कभी भी संदेह से परे नहीं रहीं। लिहाजा आज भी इमरान खान ‘निर्वाचित’ के बजाय ‘चयनित’ ही अधिक माने जाते हैं। परन्तु इमरान खान, जैसा कि उनके समर्थक मानते रहे हैं, पाकिस्तान की राजनीति में ‘नई हवा’ की तरह आये, वहां गहरे पैठी परिवार और बिरादरी की परम्परा को तोड़ दिया। जबकि वास्तविकता यह है कि इमरान खुद पाकिस्तान की राजनीति में रंग गए और जो टूटा, वह था पाकिस्तान की आम जनता का विश्वास। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार बदहाली की ओर जा रही है, कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है तथा बेरोजगारी और महंगाई की मार के चलते आधी आबादी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। और ऐसे में मुल्क शासक जनता की तकलीफों को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने के बजाय वास्तविक समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए कृत्रिम हैं। समस्याएं उत्पन्न करने में लगे हुए फरवरी में जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल पर हुए हमले और भारत द्वारा इसके बाद बालाकोट के हमले के बाद पाकिस्तान ने इसे बड़ा आतंकी ठिकानों पर जबरदस्त हवाई अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास किया था। और अब अगस्त के प्रारंभ में भारत की संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 ए के उपबन्धों को समाप्त करने को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है, जबकि यह भारत का नितांत आंतरिक मामला है। वैसे अब यह मामला पाकिस्तान के लिए इतना भी आसान नहीं रहा है, वह आंतरिक तथा बाह्य मोर्चों पर बुरी तरह से घिरता नजर आ रहा है और उसके लिए हालत लगातार बिगड़ते नजर आ रहे हैं।


बालाकोट का जिन्न:———पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का मामला उछाले जाने के बाद कुछ अप्रत्याशित घटनाक्रम सामने आए हैं। फरवरी 2018 में पुलवामा में आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में चल रहे आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। उस वक्त पाकिस्तानी सेना और सरकार ने पहले तो ऐसी ‘किसी कार्रवाई’ के होने से स्पष्ट इनकार किया, फिर उसे ‘मामूली हमला’ बताया था, जिससे ‘कोई नुकसान नहीं हुआ था’। उसने उस कार्रवाई को भारत का ‘मतिभ्रम’ करार दे दिया था। भारत के अनेक राजनैतिक दलों ने भी पाकिस्तान के उन बयानों का लगभग समर्थन करते हुए अपने देश की ही सरकार पर उंगली उठाने की देशविरोधी हरकत की थी, उस हवाई हमले की कड़ी आलोचना की थी, हवाई हमले की सत्यता पर संदेह व्यक्त किया था और इसे महज चुनावी स्टंट बतया था। परन्तु जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने के संसद के कदम से तिलमिलाए पाकिस्तान ने आखिरकार बालाकोट के जिन्न को बोतल से बाहर ला खड़ा किया। पाकिस्तान के 73वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पाकिस्तानी अधिक्रांत कश्मीर हम दो पाकिस की राजधानी मुजफ्फराबाद में प्रधानमंत्री इमरान खान ने वहां की असेम्बली के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि ‘हमें पुख्ता जानकारी है कि भारत अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के बाद यहां एक बड़े ऑपरेशन की योजना बना रहा है’। इमरान खान ने कहा कि, ‘हमारे पास जानकारी है और हम राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की दो बैठकें भी इस नजरिए से कर चुके हैं। पाकिस्तान सेना को पूरी जानकारी है कि भारत ने आजाद कश्मीर (पीओजेके ) में कार्रवाई करने की योजना बनाई है। ठीक उसी तरह जैसे पुलवामा के बाद उन्होंने बालाकोट में कार्रवाई की थी । हमारे पास जो जानकारी है, उसके अनुसार उन्होंने बालाकोट हमले से भी अधिक खतरनाक हमला करने की तैयारी की हुई है । उल्लेखनीय है कि भारत के इन आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले की बात को पाकिस्तान ने पहले सिरे से खारिज कर दिया था और सेना ने इस जगह आवाजाही पर रोंक लगा कर इस हमले से सम्बन्धत सारे सबूत मिटने के प्रयास किये थे। इतना ही नहीं, चुनिंदा विदेशी पत्रकारों को मौके पर ले जाकर कुछ पेड़ गिरने के दृश्य दिखाए थे और बताया था कि ‘भारत के हवाई हमले से जानो-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ है’। परन्तु अब देश का प्रधानमंत्री ही सत्य को स्वीकार कर रहा है और वह भी पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में। पर यह स्वीकारोक्ति पाकिस्तान की सेना के लिए गले की फांस बनती प्रतीत हो रही है। भारत के बालाकोट पर हवाई हमले के बाद पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा और सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने इस हमले को नकारने के अथक प्रयास किये थे। लेकिन अब इमरान खान के इस बयान ने पाकिस्तान की सेना को भी झूठा ठहराते हुए उसकी सरेआम किरकिरी करवाई है। इसे लेकर वहां की फौज और आम पाकिस्तानी हतप्रभ हैं और पानी पी- पीकर इमरान को कोस रहे हैं। खबर यह भी है कि पाकिस्तानी फौज के आला अफसर इमरान खान से खासे नाराज हैं।

सं.रा. सुरक्षा परिषद् में किरकिरी 
पा किस्तान ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने के भारत सरकार के फैसले को लेकर दुनिया भर में हाय-तौबा करने की दुर्नीति बनाई, पर वहां भी उसे असफलता ही हाथ लगी । उसके द्वारा इस मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के भरसक प्रयास किये गए। 5 अगस्त को जब भारत की राज्यसभा द्वारा 37o और राज्य पुनर्गठन के सम्बन्ध में विधेयक पास किया जा रहा था, पाकिस्तान के राजदूतों ने दुनियाभर के देशों में अपने पक्ष में भारत के खिलाफ दलबंदी शुरू करने की कोशिश की थी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी जेद्दाह में इस्लामिक सहयोग संगठन के देशों के सम्मुख सहायता की याचना करने पहुंच गए। परन्तु पाकिस्तान के ये सभी प्रयास बुरी तरह से विफल साबित हुए । अंत विश्वस्त सहयोगी चीन, जो स्वयं पिछले 12 हफ्तों से हांगकांग में नागरिक उसका अधिकारों के पक्ष में चलाये जा रहे जन-

  • पाकिस्तान की असलियत
पाकिस्तान की असलियत एक बार फिर दुनिया के सामने उजागर हो चुकी है।पाई-पाई को मोहताज यह देश किस तरह अपनी भूखी, अशिक्षित और तमाम मुसीबतें झेल रही जनता होयुद्धोन्माद में डुबा देना चाहता है, यह सिर्फ पश्चिमी दुनिया ही नहीं, मुस्लिम देश भी देख रहे हैं

आन्दोलन से गहरे तनाव और दबाव में है, पाकिस्तान की मदद को सामने आया है । पर चीन की मदद से पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में लाया गया प्रस्ताव भारत की सफल कूटनीति के बूते बेअसर साबित हुआ। इस विषय में दो तथ्य उल्लेखनीय हैं। में पहला, चीन लगातार पाकिस्तान के सुर मिलाता नजर आ रहा है। इसका सर्वप्रथम कारण यह है कि अब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरने वाली चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना के अस्तित्व पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं । इस परियोजना पर लगभग 60 अरब डॉलर का निवेश किया जा चुका है । वहीं दूसरी ओर चीन बेवजह के मुद्दों को हवा देने की अपनी रणनीति द्वारा विश्व का ध्यान हांगकांग में हो रही घटनाओं से हटाना चाहता है, जो उसके मानवाधिकार हनन प्रतिबद्धताओं के अनुपालन में कोताही के रिकॉर्ड को खुलकर सामने रखती हैं। वही सुरक्षा साथ खड़ा सुर और राजनैतिक होना भारत के राजनय की सफलता को परिषद में रूस का भारत रेखांकित भी करता है। उल्लेखनीय है कि रूस ने 1957, 1962 और 1971 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पश्चिम प्रायोजित प्रस्तावों पर भारत के पक्ष में वीटो का प्रयोग किया था। इस बार सुरक्षा परिषद ने 16 अगस्त को बंद कमरे में एक अनौपचारिक बैठक आयोजित की जो पाकिस्तान की मंशा के विपरीत थी। साथ ही इस बैठक के बाद सुरक्षा परिषद ने कोई बयान भी जारी नहीं द्विपक्षीय ही है जिस पर भारत-पाकिस्तान ही चर्चा कर सकते हैं। किया है। चीन को छोड़कर परिषद् इस विषय पर एकमत है कि कश्मीर मुद्दा द्विपक्षीय ही है जिस पर भारत-पाकिस्तान ही चर्चा कर सकते हैं।
युद्धोन्माद से ग्रस्त पाकिस्तान 
पाकिस्तान अपने निहित स्वार्थों को लेकर भारत पर युद्ध थोपता आया है ।1947, 1965, 1971 और 1999 के अलावा वह लगातार आतंकी संगठनों के सहयोग से भारत में शान्ति के माहौल को नष्ट करने के प्रयासों पर अआमादा रहा है वह अब एक बार फिर सार्जनिक रूप से यूद्ध की धरमकियां दे रहा है। पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए इमरान खान ने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘पाकिस्तान के खिलाफ भारत कोई आक्रामकता दिखाता है तो उनका देश पूरी ताकत से जवाब देगा’। परन्तु आक्रामकता का कोई संकेत ही नहीं दिया गया है।


इमरान के युद्ध सम्बन्धी बयान से उनकी झल्लाहट और विवशता अधिक प्रकट होती है। पाकिस्तान की सेना का दबाव शायद इमरान के लिए असहनीय हो चुका है। अपने उक्त संबोधन में युद्ध की चेतावनी देते हुए इमरान ने यह भी कहा, गर पारंपरिक युद्ध होता है तो दो नतीजे हो सकते हैं, युद्ध हमारे खिलाफ जा सकता है या हमारे हक में जा सकता है। अगर युद्ध हमारे खिलाफ जाता है तो एक रास्ता यह होगा कि हम हाथ खड़े कर हार मान लें और दूसरा रास्ता होगा-टीपू सुल्तान की तरह खून के आखिरी कतरे तक मुकाबला करें। अगर हम आखिरी करतरे तक हैं तो फिर इस जंग को कोई नहीं जीत पाएगा। सब हार जाएंगे। उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। में परमाणु युद्ध की धमकी नहीं दे रहा हूं, सामान्य समझ की अपील कर रहा हूं। अच्छे की उम्मीद करिए लेकिन सबसे खराब परिस्थिति के लिए भी तैयार रहिए। परन्तु जहां एक और यह बयान पाकिस्तानी नैराश्य को प्रदर्शित करता है वहीं इसमें एक फिदायीन हमलावर का मनोभाव भी झलकता है। पाकिस्तान की चेतना में यह तथ्य गहरे तक समाहित है कि वह एक परमाणु शक्ति है और जब शासन के सूत्र सेना के हाथों में जाने लगते हैं तो यह खतरा और भी प्रबल हो जाता है। पाकिस्तान में जनरल कमर जावेद भारत द्वारा लड़ते बाजवा का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहाहै, विशेषकर इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद से। अब प्रधानमंत्री ने उनके कार्यकाल को 3 साल के लिए बढ़ा दिया है। ऐसी स्थिति में जब सरकार हर मोर्चे पर लगातार लड़खड़ा रही है, सेना द्वारा परदे के पीछे से सत्ता सूत्र अपने हाथ में लेने की पूरी संभावना है ऐसी स्थिति में पाकिस्तान की आक्रामकता में और बढ़ोतरी हो सकती है।
बदला माहौलः भारतीय परमाणु नीति 
 
बढ़ा देता है। ऐसी स्थिति में भारत के लिए पाकिस्तान की आक्रामकता का सीधा संबंध क्षेत्र में परमाणु युद्ध की संभावना को उपयुक्त नीति क्या होनी चाहिए, यह देश के नीति निर्माताओं के सम्मुख बड़ा प्रश्न है। इस विषय पर भारत की नीति पर एक बदलते परिप्रेक्ष्य में भारत की परमाणु नीति को स्पष्ट करता है । पोकरण की अपनी हाल ने इस सिद्धांत का कड़ाई से पालन किया है । परन्तु भविष्य में क्या होता है, यह संकेत भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के एक बयान से भी सामने आया है जो की यात्रा के दौरान, रक्षा मंत्री सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा कि ‘भारत परमाणु हथियारों के ‘पहले उपयोग न करने’ के सिद्धांत के अनुपालन के लिए प्रतिबद्ध रहा है। भारत परिस्थितियों पर निर्भर करता है।’ उनकेइस बयान से स्पष्ट है कि परमाणु हथियारों का पहले उपयोग न करने का सिद्धांत पत्थर पर खिंची लकीर भी नहीं है भारत अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही इसका अनुपालन सुनिश्चत करेगा।

  • भारत द्वाराआक्रामकता
भारत द्वाराआक्रामकता का कोई संकेत ही नहीं दिया गया है। इमरान के युद्ध सम्बन्धी बयान से उनकी झल्लाहट और विवशता अधिक प्रकट होती है।पाकिस्तान की सेना का दबाव शायद ईमरान के लिए असहनीय हो चुका है। 

उल्लेखनीय है कि भारत का परमाणु सिद्धांत विशुद्ध रूप से प्रत्युक्तर देने की नीति पर आधारित है। इसके अनुसार भारत परमाणु हमले के जवाब में ही इस तरह की कार्रवाई करेगा, लेकिन एक बार हमला करने के बाद, भारत की प्रतिक्रिया बड़े पैमाने पर होगी 2016 में, तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने भी भारत की प्रथम प्रयोग न करने की नीति की व्यावहारिकता पर प्रश्न उठाये थे, और कहा था कि नई दिल्ली अनंत काल के लिए प्रथम प्रयोग न करने की नीति का पालन करने लिए बाध्य नहीं रह सकती। परमाणु अस्त्रों के प्रति यह पाकिस्तान का उन्माद ही है कि उसने कथित तौर पर अपने पास कहीं ज्यादा बड़ा परमाणु जखीरा जमा कर रखा है । लेकिन भारत का आयुध भण्डार भी किसी तरह कमतर नहीं है। इस बात की बहुत संभावना है कि पाकिस्तान की आन्तरिक राजनैतिक एवं सामरिक स्थिति और सेना का बढ़ता भारत के विरुद्ध अपरिपक्वतापूर्ण निर्णय लेने के लिए प्रेरित करें। वहीं भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध, कूटनीतिक उपाय, सामरिक तैयारियां , राजनैतिक नेतृत्व की दूरदर्शी निर्णय लेने की क्षमता और रणनीतिक तत्परता ही भारत की सुरक्षा के आधारभूत स्तम्भ हैं। पाकिस्तान और चीन इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं। अपनी बदहाली की स्थिति में पाकिस्तान अपनी पराजयों की श्रृंखला में एक और आयाम जोड़ने को तत्पर होगा, वर्तमान परिस्थितियों में इस बात की संभावना कम ही है लेकिन यह जरूर है कि पाकिस्तान की असलियत एक बार फिर दुनिया के सामने उजागर हो चुकी है। पाई-पाई को मोहताज यह देश किस तरह अपनी भूखी, अशिक्षित और तमाम मुसीबतें झेल रही जनता हो युद्धोन्माद में डुबा देना चाहता है, इसे सिर्फ पश्चिमी दुनिया ही नहीं, मुस्लिम देश भी उसे प्रभाव देख रहे हैं।

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