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बगावत से हिले कट्टर इस्लामी

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  • इस्लाम की कुरीतियों से तंग
सऊदी अरब सहित कई इस्लामी देशों में रहने वाले मुस्लिम इस्लाम की कुरीतियों से तंग आकरया तो मजहब से किनारा कर रहे हैं या फिर अपने को नास्तिक की श्रेणी में ला रहे हैं। लेकिन एक बड़ी तादाद ऐसी भी है जो शरिया कानून के भय केसब कुछ जान-समझकर अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पा रही 
 
 
  सुर्या बुलेटिन(गाजियाबाद) कुछ वर्ष पहले सऊदी अरब की एक फिलिस्तीनी कवि अशरफ फयाज को दी गई फांसी की सजा को तो बदल दिया, लेकिन अपने नए फरमान में उसे 8 साल की कैद, 800 कोड़े मारने और कविता न लिखने का फरमान सुनाया था। गौरतलब है कि अशरफ फयाज पर इस्लाम कबूल करने और कविता के माध्यम से ईश निंदा और नास्तिकता के प्रचार का आरोप लगाया  गया था। इसके साथ ही उसके मोबाइल में कुछ महिलाओं के फोटो पाए जाने पर अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए 16 बार 800 कोड़े मारने का फरमान सुनाया। हालांकि अशरफ अपने ऊपर लगे आरोपों को मानने से इनकार करता रहा। यहां यह बता दें कि अशरफ फयाज को जानने वाले मानते हैं कि उसने इस्लाम को त्याग दिया था। वे एक फिलिस्तीनी शरणार्थी परिवार से थे। उसकी एक कविता पढ़ने के बाद एक नागरिक ने उन पर ईश निंदा और नास्तितकता का प्रचार करने का आरोप लगया था। फोन में कुछ महिलाओं के फोटो पाए जाने के वाले मामले में उसने अदालत से माफी मांग ली थी। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार एक सऊदी नागरिक ने अशरफ पर नास्तकता का प्रचार करने और ईश-निंदा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था जिसके कारण अगस्त 2013 में गिरफ़्तार किया गया था। इस मामले में अशरफ को दूसरे ही दिन रिहा कर दिया गया था लेकिन 2014 में उसे अपना मजहब त्याग देने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। 2008 में अशरफ की एक छपी हुई कविता में मजहब को चुनौती दी गई थी, साथ ही नास्तिक विचारधारा का भी प्रचार किया गया था। अदालत ने उसके केस को निचली अदालत में भेजा जिसने नवंबर, 2015 में उसे मौत की सजा सुनाई, जिसके बाद 2016 में दुनिया भर के लेखक उसके समर्थन में आए और उसके पक्ष में आवाज बुलंद की।


मजहब छोड़ रहे मुस्लिम—-––
सऊदी अरब को अत्यधिक कठोर इस्लामी कानूनों के लिए जाना जाता है। इसके कारण भी बहुत से लोग अपनी इस्लाम-विरोधी भावनाओं को दबाए बैठे हैं और इस्लाम में व्याप्त कुरीतियों को सहन कर रहे हैं। हाल ही में कुछ | अध्येताओं ने अरबी सोशल मीडिया पर जब अंग्रेजी और अरबी में नास्तिक शब्द की खोज की तो ऐसे हजारों फेसबुक पेज और ट्विटर अकाउंट मिले जिसमें लोगों खुद को नास्तिक घोषित किया था। यही ने नहीं, इनके ‘फॉलोअर्स’ भी हजारों हैं और ये काफी लोकप्रिय हैं। इनमें ‘ट्यूनीशियन एथीस्ट’ पर 10,000 लाइक हैं तो
 
  • बीबीसी और अरब बैरोमीटररिसर्च नेटवर्क ने सर्वे किया
बीबीसी और अरब बैरोमीटररिसर्च नेटवर्क ने हाल ही में एक सर्वे किया जिसमें पाया किअरब में अपने को नास्तिक मानने वालों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होर ही है।मध्यपूर्व औट उत्तरी अफ्रीका के10 देशों के 25 हजार लोगों के बीच किए गए सर्वे के अनुसार अपने को नास्तिक कहने वालों की संख्या 8 फीसदी से बढ़कर 13 फीसद हो गई है।पिछले 30 सालों में यहां मजहवी नहीं की पहचान बताने वालों की संख्या में 18 फीसदी बढ़ोतरी हुई है,जो अब तक की सबसे जयाद मानी गयी है। 
सुडानीज एथीस्ट’ पेज को तीन हजार से अधिक लोगों ने फॉलो किया है । इसी तरह ‘सीरियन एथीस्ट नेटवर्क’ पर 4,000 लोग मौजूद हैं। ऐसे ही ट्विटर पर खुद को नास्तिक घोषित करने वाले एक ट्विटर हैंडल @mol7d_ArObi के फॉलोअस की संख्या 8,000 से भी अधिक है। यह अकेला ट्विटर अकाउंट नहीं है, पड़ताल करने पर पाया कि कई ऐसे अकाउंट मौजूद हैं जो नास्तिकता का प्रचार करते नजर आते हैं। इनमें से कुछ का कहना है। कि ‘वे तर्क से इस्लाम की रूढ़ियों को खत्म करना चाहते हैं। इनमें से कछ तो आएदिन इस्लाम विरोधी तस्वीरें और टिप्पणियां तर्क के साथ पोस्ट करते हैं। कुरान की फटी हुई किताब तक। इसमें कुछ पोस्ट ऐसी भी हैं, जिसमें कहा गया कि ‘इस्लामिक विचार अन्य मत-पंथों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देता है। कवैती ट्विटर यूजर @Q8yAtheist खुद को एक कुवैती काफिर, एक नास्तिक के रूप में घोषित करता है और इस्लाम की कुरीतियों को आड़े हाथों लेता रहता है। उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब में नास्तिक होना उतना आसान नहीं है। इसके लिए वहां कई लोगों को जेल हुई है। सऊदी अरब फाड़ते हुए एक वीडियो अपलोड करने के लिए फांसी दे दी गई थी। अंग्रेजी अखबार सऊदी गैजेट के मुताबिक, इसी साल फरवरी में सऊदी अरब के इस्लामिक कोर्ट ने इस्लाम छोड़ने पर एक आदमी को मौत की सजा सुनाई थी। इसी तरह पिछले साल मिस्र के एक छात्र करीम अशरफ मुहम्मद अल-बन्ना को फेसबुक पर अपनी पोस्ट में ईशनिंदा के लिए तीन साल की सजा दी गई थी। ह्यूमन राइट्स वॉच ने इस सजा को नास्तिकता और अन्य असहमति वाले विचारों को दबाने वाली सरकारी योजना का हिस्सा बताया था। हालांकि नास्तिक बन जाना या इस्लाम से किनारा करने वाले मामले सऊदी अरब में ही नहीं होते बल्कि अन्य इस्लामिक देशों में रह-रह कर इसकी चिनगारी उठती रहती है। लेकिन शरिया कानून की वजह से सच को जानने के बाद भी बहुत से लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते और इस्लाम में घुट-घुटकर जीते रहते हैं। एक नौजवान को कुरान पाकिस्तान दुनिया के उन सात देशों में एक है,जहां नास्तिकों को भेदभाव और अत्याचार का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान में नास्तितकों के खिलाफ भेदभाव तेजी से बढ़ा है । दुनिया के 13 देशों में नास्तिकता का इजहर करने पर मौत की सजा मिलती है सभी मुस्लिम बहुल देश हैं। इन सभी देशों में ईशनिंदा पर कड़ी सजा का प्रावधान है। इनमें अफगानिस्तान, ईरान, मलेशिया, मालदीव, मॉरीतानिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, क्र, सऊदी अरब, सोमालिया, सूडान, संयुक्त अरब अमीरात और यमन प्रमुख है। इंटरनेशनल ह्यूमनिस्ट एंड एथिकल यूनियन (आईएचईयू) नास्तिकों और संदेहवादियों की वैश्विक संस्था है।


इसने 2013 में एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें दुनिया के 192 देशों का अध्ययन किया गया था और यह जानने की कोशिश की गई थी कि इन देशों में नास्तिकों और संदेहवादियों की क्या स्थिति है । संस्था ने इन देशों के वकीलों, मानवाधिकार हैं कार्यकर्ताओं मीडिया की रिपोर्ट और अदालती दस्तावेजों इत्यादि का विस्तृत अध्ययन किया और फिर कहा था, “दुनिया के ढेर सारे देश नास्तिकों और स्वतंत्र सोच रखने वालों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहते हैं। एक मुस्लिम से नास्तिक में बदल चुके युवा पाकिस्तानी कवि ए. हसन कहते हैं कि ‘वह कभी भी मुस्लिम रीति -रिवाजों से जुड़ाव महसूस नहीं करते थे। जब यह विचार मैंने अपने दोस्तों से बांटे तो ज्यादातर ने उन्हें मजाक में लिया। कुछ ने तो यहां तक कहा कि वह एक दौर से गुजर रहे हैं जो जल्द ही खत्म हो जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हसन अमेरिका में पढ़े हैं और मानते हैं कि पाकिस्तान को एक पंथनिरपेक्ष देश होना चाहिए, यहां सार्वजनिक जिंदगी में मजहब की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। हसन अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं। संख्या ऐसी है जो मजहब से किनारा मुस्लिम देशों में रहने वाली बहुतायत करना चाहती है और नास्तिक बनकर रहना चाहती है। उसके पीछे वह यही तर्क देती है कि इस्लाम में इतनी सारी कुरीतियां हैं जिन्हें लेकर जीवन जीना बहुत कठिन है। इसलिए अच्छा है कि मजहब से लेकिन ये लोग खुले तौर पर इस्लाम को छोड़ कोई अन्य मत-पंथ नहीं अपना सकते। इसलिए मुसलमान अपने को किनारा करके नास्तिक बन रहा जाए। की नास्तिक इस्लाम रूढ़िवादिता के प्रति अपने गुस्से का बताकर इजहार करते हैं।
साभार पांचजन्य

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