- बाबा परमेन्द्र आर्य
सुर्या बुलेटिन(मोदीनगर) अखाडा महाराजा सूरजमल गाँव रोरी मे यज्ञ हवन करके महाराणा प्रताप की जयंती मनाई गई। यज्ञ उपरांत बाबा परमेन्द्र आर्य ने युवाओं को महाराणा प्रताप के बारे में जानकारी देते हुए कहा मेवाड़ के राजा व भारतीय इतिहास के सूरमा महाराणा प्रताप की जयंती पर देशभर में कार्यक्रम होते रहे हैं। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के कारण देशवासी अपने घर मे ही रहकर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को नमन कर रहे है और अपने परिवार के साथ ही उनकी जयंती मना रहे है। उनकी जीवन-गाथा साहस, शौर्य, स्वाभिमान और पराक्रम का प्रतीक है, जिससे देशवासियों को सदा राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा मिलती रहेगी। इतिहास में गौरवशाली नाम दर्ज करने वाले महाराणा प्रताप ने ऐतिहासिक हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा था। जिसमें वे हार गए थे लेकिन मुगलों के समक्ष घुटने नहीं टेके थे।
महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई1540 ई. को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। महाराणा व मुगल बादशाह अकबर के बीच हुआ हल्दी घाटी का युद्ध काफी प्रसिद्ध है। क्योंकि इस युद्ध को इतिहास के कई बड़े युद्धों से बड़ा माना गया है। मालूम हो कि यह युद्ध 18 जून 1576 में चार घंटों ही चला था जो काफी विनाशकारी साबित हुआ। हल्दी घाटी के युद्ध में वीर महाराणा के पास सिर्फ 22 हजार सैनिक थे वहीं मुगल शासक अकबर के पास 85 हजार सैनिक थे। युद्ध काफी भीषण था, लेकिन महाराणा ने हार नहीं मानी। वे मातृभूमि को आक्रांताओं से बचाने के लिए संघर्ष करते रहे।
महाराणा का घोड़ा ‘चेतक’ भी इस लड़ाई मे मारा गया था, अपनी स्वामी भक्ति व ताकत के लिए चेतक को भी सदैव याद किया जाता है।
अक्सर कविताओं में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक को हमनें सुना है, जो उन्हें अत्यधिक प्रिय था।चेतक अपने स्वामी का बहुत वफादार था वह युद्ध में होशियारी के साथ महाराणा को बचाता था व दुश्मनों को चकमा देता था।
युद्ध मे चेतक बुरी तरह घायल हो गया और चेतक को घायल देख मुगल सेना ने महाराणा पर तीरों की बरसात कर दी। चेतक की टांग से बुरी तरह खून बह रहा था फिर भी वो महाराणा को सुरक्षित स्थान तक ले गए। महाराणा तो बच गए लेकिन उनका वीर चेतक वीरगति को प्राप्त हो गया। चेतक के मरने से महाराणा प्रताप बहुत दुखी हुए, युद्ध के बाद उन्होंने चेतक का स्मारक भी बनवाया।
हल्दीघाटी के युद्ध उपरांत राणा प्रताप गोगुंडा के पश्चिम में एक कस्बे कोलियारी में पहुंचे वहां उनके घायल सैनिकों का इलाज किया जा रहा था। प्रताप को पता चल कि यहां भी मुगल सेना पहुंच जाएगी। इसीलिए वे वहां से अपने परिवार व फौज को सुरक्षित जगह लेकर निकल गए और 20 सैनिकों को किले की सुरक्षा के लिए लगा गए। वे सभी 20 जवान मुगलों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। प्रताप को युद्ध की आशंका पहले ही थी इसीलिेए उन्होंने किले की राशन रूकवा दी थी जिसके बाद मुगल सेना को खाने के लाले पड़ गए थे। बाद मे मुगल सेना अपने घोड़ों को मारकर खाने लगे थी।
हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने अपनी युद्ध नीति बदल दी और वे मुगलों पर घात लगाकर हमला करने लगे। कहा जाता है कि महाराणा एक साथ सौ जगहों पर रहते थे क्योंकि मुगलों पर हमला करके वे जंगलों में बने गुप्त रास्ते से निकल जाते थे। उन्होंने कभी भी मुगलों की फौज को चैन से नहीं बैठने दिया प्रतिदिन कही ना कही मेवाड़ के सैनिक भीलों के साथ मिलाकर मुगलो की सेना से गुरिल्ला युद्ध करते रहे।
1582 में दिवेर के युद्ध में राणा प्रताप ने उन क्षेत्रों पर फिर से कब्जा जमा लिया था जो कभी मुगलों के हाथों चले गये थे। इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा था। क्योंकि 1585 तक लंबे संघर्ष के बाद वह मेवाड़ को मुक्त करने में महाराणा सफल रहे।
महाराणा प्रताप जब गद्दी पर बैठे थे, उस समय जितनी मेवाड़ भूमि पर उनका अधिकार था, पूर्ण रूप से उतनी भूमि अब उनके अधीन थी। महाराणा प्रताप को अकबर के साथ साथ अपने भाईयों व अन्य राजपूत राजाओं से भी लडना पडा़ था यदि हल्दीघाटी के युद्ध में जयपुर के कुंवर मानसिंह ना होतें तो मुगलो की सेना मैदान में टिक ही न पातीं।
1596 में शिकार खेलते समय महाराणा को चोट लगी जिससे वह कभी उबर नहीं पाए। 19 जनवरी 1597 को सिर्फ 57 वर्ष आयु में चावड़ में उनका देहांत हो गया। महाराणा प्रताप जी को सदैव एक वीर योद्धा के रूप मे पूजा जाता रहेगा। उनकी जयंती पर सभी देशवासी उन्हें कोटि कोटि नमन कर रहे है। महाराणा प्रताप जी की जयंती पर यज्ञ करने वाले में नितिन शर्मा, आर्यन, पवन शर्मा, परवीन, अभीमन्यु श्योराण आदि उपस्थित रहें।