महाकुंभ में सैकडों लोगों की मौत का कारण भगदड़ नहीं वीआईपी कल्चर है!
सरकार और मेला प्रशासन केवल वीआईपी मेहमानों की आवभगत में जुटे रहे
सामान्य श्रद्धालुओं की सुविधाओं की नहीं दिया गया कोई ध्यान
सूर्या बुलेटिन
प्रयागराज। तीर्थराज प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ को सरकार और मेला प्रशासन पर्व नहीं बल्कि एक इवेंट के तौर पर संचालित कर रहा है। सरकार के इस इवेंट में वीआईपी कल्चर का भारी प्रभाव है। वीआईपी कल्चर के कारण मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले तीन स्थानों पर भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में एक हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवा दी और 5 हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए। लेकिन, सरकार और मेला प्रशासन इस मामले को पूरी तरह से दबाने और छुपाने में लगा है। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो झूसी सेक्टर में एक दुकान में लाशों का अंबार लगा था। घायलों के लिए एंबुलेंस भी कम पड़ गई थीं, जिसके कारण डायल-112 की जीपों से घायलों को अस्पतालों तक पहुंचाया गया। अस्पतालों में भी घायलों का कोई डेटा मेंटेन नहीं किया जा रहा है। जिससे घायलों की सही संख्या बाहर न आ सके। सरकार और मेला प्रशासन हर स्तर पर इस हादसे को दबाने और छुपाने में जुटा है। खबरिया चैनलों पर भी हादसे की हकीकत और सही नुकसान को नहीं बताया जा रहा है। सूर्या बुलेटिन की पूरी टीम महाकुंभ में मौजूद है। सूर्या बुलेटिन के संपादक भी इस भगदड़ में अपनी टीम के साथ फंस गए थे, लेकिन किसी तरह उन्होंने गली नंबर तीन में पहुंचकर अपनी जान बचाई। उनके अनुसार भगदड़ एक नहीं तीन स्थानों पर हई थी। यह पूरा हादसा महाकुंभ में वीआईपी कल्चर और आम श्रद्धालुओं की अनदेखी के कारण हुआ। प्रस्तुत है ग्राउंड जीरो से हादसे की विस्तृत रिपोर्ट।
वीआईपी कल्चर ने ध्वस्त की महाकुंभ की व्यवस्थाएं
कुंभ, पूर्ण कुंभ और 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ। तीर्थराज प्रयागराज में आयोजित कुंभ को 144 साल बाद आने वाला महाकुंभ बताकर प्रचारित किया गया। प्रदेश सरकार की ओर से आशा जताई गई कि महाकुंभ में 46 करोड़ से ज्यादा लोग स्नान करेंगे। सरकार ने प्रतिदिन लाखों लोगों के आने का अनुमान लगाया और उसके अनुसार ही व्यवस्था की। इस व्यवस्था में एक बहुत बड़ा झोल था वो था वीवीआईपी और वीआईपी गेस्ट। इन गेस्ट के कारण महाकुंभ की व्यवस्था बिगड़नी शुरु हुईं और मौनी अमावस्या के अमृत स्नान से पहले महाकुंभ में भगदड़ मच गई। यह भगदड़ मेला प्रशासन की लापरवाही के कारण हुई। मेला प्रशासन और सरकारी अमला केवल वीआईपी और वीवीआईपी गेस्टों की सुख सुविधा में ही जुटा रहा। इन गेस्टों में सरकारों के मंत्री, कई प्रदेशों के बड़े व्यापारी, नौकरशाह, विदेशी मेहमान शामिल थे। पूरी सरकारी अमला इन वीवीआईपी गेस्ट की खातिरदारी और देखभाल में जुटा रहा था। यहां तक कि डीआईजी मेला की ड्यूटी वीआईपी और वीवीआईपी गेस्ट को रिसीव करने के लिए लगाई गई थी। मेले में जिस ओर वीआईपी या वीवीआईपी गेस्ट का मुूवमेंट होता था, वहां आम लोगों के लिए रास्ते बंद कर दिए जाते थे। रास्ते भी दो घंटे पहले से बंद कर दिए जाते थे और वीआईपी के वहां से जाने के आधे घंटे बाद खोले जाते थे। इस दौरान उन क्षेत्रों में श्रद्धालुओं को गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ता था। रास्ते खुलने पर श्रद्धालु तेजी से घाटों की ओर बढ़ते थे। महाकुंभ में पहुंचे विभिन्न अखाड़ों की ओर से वीवीआईपी कल्चर को लेकर कई बार विरोध भी जताया गया। मेला प्रशासन और सरकार से महाकुंभ की व्यवस्था को सेना के हाथों में देने की मांग की गई। लेकिन, सरकार ने अखाड़ों की मांग को अनदेखा कर दिया। सरकार इस मेले को एक इवेंट के तौर पर आयोजित करके देश और दुनिया के सामने एक मिसाल पेश करना चाहती थी। ऐसे में यदि महाकुंभ की व्यवस्थाएं सेना को सौंप दी जाती तो सरकार के मनसूबे पर पानी फिर जाता। फिर सरकार देश और दुनिया को कैसे बताती कि महाकुंभ में करोड़ों लोगों के लिए पुख्ता व्यवस्था की गई थी। अब हादसे के बाद सरकार की ओर से महाकुंभ के लिए जारी किए गए सभी वीआईपी पास रद्द कर दिए गए हैं। यदि सरकार ने पहले ही ऐसा कर दिया होता तो शायद सैकड़ों लोग जिंदा होते।
तीन स्थानों पर मची थी भगदड़, एक हजार से ज्यादा मौत
महाकुंभ में भगदड़ केवल एक ही स्थान पर नहीं हुई, बल्कि तीन स्थानों पर भगदड़ मची। संगम नोज, झूसी सेक्टर में पुलिस लाइन के सामने और मेले के बीच में भगदड़ मची। सूर्या बुलेटिन के संपादक अनिल यादव छोटे नरसिंहानंद संगम नोज में अपनी टीम के साथ उस समय मौजूद थे जब भगदड़ मची। उनके अनुसार मेला प्रशासन ने घाट की ओर जाने वाले सभी रास्ते बंद कर दिए थे। भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी। घाट पर जाने के लिए भीड़ अखाड़ों वाले रास्ते पर पहुंच गई थी। पुलिस ने अखाड़े के रास्ते खाली करवाने का प्रयास किया। इस अफरा-तफरी में भगदड शुरु हो गई। लोग जहां जगह मिली भागने लगे। भीड़ उस ओर भी बढ़ गई जहां लोग सो रहे थे। सो रहे लोगों को कुचलते हुए भीड़ दौड़ती चली गई। वह खुद भगदड़ वाले स्थान से कुछ दूरी पर अपनी टीम के साथ मौजूद थे। भगदड़ के दौरान जब भीड़ उनकी ओर आने लगी तो उन्होंने गली नंबर तीन में दौड़ लगा दी और अखाड़े के अंदर पहुंचे। जिससे उनकी जान बच सकी। इसके कुछ ही देर बाद झूसी सेक्टर में पुलिस लाइन के सामने भगदड़ मची। इसके अलावा मेले के मध्य में भी भगदड़ मची। इन भगदड़ में एक हजार से ज्यादा लोग मौत की नींद में सो गए और लगभग 5 हजार से ज्यादा लोग घायल, चोटिल और बीमार हो गए। लेकिन, सरकारी निर्देश पर मेला प्रशासन ने सच्चाई को पूरी तरह से दबा दिया। सूबे के मुख्यमंत्री भी महाकुंभ में हुए हादसे के कई घंटे बाद सामने आए।
लाशों के ढेर लगाए गए
झूसी सेक्टर में पुलिस लाइन के सामने ही हल्दीराम का एक स्टॉल है। उस स्टॉल में लाशों के ढेर लगाए गए। मेले में 70 एंबुलेंस लगाई गई हैं, लेकिन भगदड़ के बाद घायलों और मृतकों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि एंबुलेंस कम पड़ गईं। घायलों को डायल-112 की जीपों के जरिए अस्पतालों तक पहुंचाया गया। एंबुलेंस की कमी के कारण ही हल्दीराम के स्टॉल में शव और घायलों को जमा किया गया। जहां से डायल-112 की जीपों के जरिए बाद में उन्हें ले जाया गया। यह मंजर देखकर लोगों के होश उड़ गए। जिसके बाद लोग महाकुंभ से वापस लौटने लगे। फिलहाल महाकुंभ क्षेत्र लगभग खाली हो गया है।
फफक पड़े मुख्यमंत्री, नहीं बताई सच्चाई
महाकुंभ में भगदड़ मचने और लोगों की मौत होने से सूबे के मुख्यमंत्री को गहरा सदमा लगा है। इस संबंध में घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री फफक भी पड़े थे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगदड़ में मारे गए और घायल हुए लोगों के प्रति गहरी संवेदना जताई और मृतक आश्रितों को 25-25 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की। लेकिन, मुख्यमंत्री मेले में मरने वालों की सही संख्या को छुपा गए। मुख्यमंत्री ने यह तो कहा कि घटना की जांच होगी और लापरवाही बरतने वालों पर कड़ी कार्रवाई होगी, लेकिन यह कब होगी इसकी घोषणा नहीं की गई। अखाड़ों की कड़ी नाराजगी के बाद महाकुंभ के लिए जारी किए गए वीआईपी पास रद्द किए गए। हालांकि यदि वीवीआईपी कल्चर को महाकुंभ पर हावी नहीं होने दिया जाता तो इस हादसे को रोका जा सकता था।
खूब किया गया था प्रचार, नहीं बनाई थी योजना
महाकुंभ के लिए सरकार ने कई महीने पहले से तैयारियां शुरु कर दी थी। महाकुंभ क्षेत्र को अस्थाई जिला भी घोषित किया गया। सरकार ने महाकुंभ का जमकर प्रचार भी किया। सोशल मीडिया ने इस प्रचार को और बढ़ावा दिया। जिसके चलते महाकुंभ में देश ही नहीं विदेश से भी लोग आने लगे। महाकुंभ का पहले अमृत स्नान में हजारों विदेशी नागरिक भी शामिल हुए थे। यहां तक कि एप्पल कंपनी की सीईओ भी कुंभ पहुंची थीं। सरकार और सोशल मीडिया के प्रचार का असर ऐसा था कि श्रद्धालु यह मानने लग गए कि यह महाकुंभ उनके जीवन में दोबारा नहीं आएगा। 144 साल बाद हो रहे इस महाकुंभ में स्नान करने की इच्छा प्रत्येक श्रद्धालु के मन में प्रबल हो गई। इस प्रचार का असर यह हुआ कि सरकार 45 दिन के इस पर्व में प्रतिदिन एक से सवा करोड़ लोगों के आने का अंदाजा लगा रही थी, लेकिन मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान के लिए लिए 10 करोड़ से ज्यादा लोग अमृत स्नान के लिए पहुंच गए। इतनी बड़ी संख्या तो सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा था। लिहाजा व्यवस्था तो केवल लाखों लोगों के हिसाब से की गई थी। यह संख्या बढ़ा भी ली जाए तो सवा करोड़ अधिकतम मानी जा रही थी। जब 10 करोड़ लोग महाकुंभ में पहुंच गए तो मेला प्रशासन के हाथ पैर भी फूल गए। अब सरकार और प्रशासन के सामने तीन गंभीर समस्याएं खड़ी हो गई थीं। पहली अखाड़े के संतों को संभालना, दूसरी वीआईपी गेस्ट को संभालना और तीसरी सामान्य श्रद्धालुओं को संभालना। इनमें मेला प्रशासन और सरकार ने पहली दो जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दी और सामान्य श्रद्धालुओं पर पाबंदी लगाई गई। लेकिन, सरकार और मेला प्रशासन यह भूल गया कि सामान्य यानी आम आदमी भीड़ के रूप में संभलता नहीं है। भीड़ को संभालने के लिए महाकुंभ में तैनात पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के पास कोई ट्रेनिंग या प्लानिंग भी नहीं थी।
बिना योजना के ध्वस्त हो गई व्यवस्थाएं
महाकुंभ में सुविधा और सुरक्षा का सरकार ने खूब प्रचार किया था, लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया। महाकुंभ क्षेत्र के प्रमुख रास्तों पर नक्शे तक नहीं लगाए गए थे। जिससे रास्ता भटकने वालों को मदद मिल सके। पुलिसकर्मियों को भी महाकुंभ के रास्तों के बारे में कुछ पता नहीं था। वह भी अंदाजे से ही लोगों को इधर-उधर भेज रहे थे। कई गलियां ऐसी थीं जो आगे जाकर बंद थीं, लेकिन उन गलियों के बाहर इसकी कोई सूचना नहीं थी। जिसके कारण लोगों को गलियों के अंदर जाकर वापस आना पड़ रहा था। इससे भी सामान्य श्रद्धालुओं में मेला प्रशासन और व्यवस्थाओं को लेकर गुस्सा पनप रहा था। इसके अलावा मेला क्षेत्र में अत्याधिक वीआईपी मूवमेंट के कारण सामान्य श्रद्धालुओं को कभी भी रोक दिया जाता था। हजारों किलोमीटर दूर से संगम में स्नान की अभिलाषा लेकर पहुंचे श्रद्धालुओं के मन को इस व्यवस्था से गहरी चोट पहुंच रही थी। स्नान घाटों पर जाने के लिए एक ही मार्ग था। इसी मार्ग से घाट की ओर जाना और वापसी करनी होती थी। यदि एंट्री और एग्जिट के रास्ते अलग-अलग होते तब भी कुछ राहत हो सकती थी।
सुबह 6 बजे शुरु करवाया गया स्नान
रात में लगभग एक बजे भगदड़ शुरु हुई थी। जिसके बाद सुबह 6 बजे तक मेला प्रशासन और पुलिस हालात पर काबू पाने में लगी रही। हालात काबू कैसे पाया गया, यह किसी से छुपा नहीं है। घोषणा करवा दी गई कि जो जहां है वहीं रहे और पास के घाट पर स्नान करे। एक से दूसरे सेक्टर में जाने का प्रयास न किया जाए। लाशों और घायलों को हटाने में पुलिस को लगभग चार घंटे का समय लगा। जिसके बाद सुबह 6 बजे स्नान के लिए मार्ग खुलने की घोषणा कर दी गई। यहां भी मेला प्रशासन ने चालाकी दिखाई। घटना के बाद महाकुंभ में आए श्रद्धालु खौफ के चलते स्नान करके तुरंत ही रवाना होने लगे। दोपहर तक तो आधे से ज्यादा महाकुंभ क्षेत्र खाली हो गया था। जिसके कारण प्रयागराज से बाहर निकलने वाले रास्तों पर भी जाम लग गया। इसके बाद मेला प्रशासन ने शाम के समय कुछ अखाड़ों के संतों को राथों पर सवार करके घाटों की ओर रवाना किया। संतों के सजे हुए रथों पर स्नान के लिए जाते हुए वीडियो को वायरल किया गया। हालांकि संत बिना स्नान के ही वापस लौट गए।
अमित शाह के आने के बाद से बिगड़ने लगी थी व्यवस्थाएं
महाकुंभ में मौनी अमावस्या के शाही स्नान से दो दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ महाकुंभ पहुंचे। जिसके चलते महाकुंभ में सामान्य श्रद्धालुओं के लिए गंभीर परेशानियां खड़ी हो गईं। जिस समय अमित शाह अपने काफिले के साथ महाकुंभ पहुंचे, वहां 60 लाख से ज्यादा श्रद्धालु मौजूद थे। केंद्रीय गृह मंत्री के प्रोटोकॉल के चलते यूपी सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री के अलावा कई और मंत्री भी महाकुंभ पहुंचे थे। लगभग 200 गाड़ियों का काफिला महाकुंभ क्षेत्र में कई घंटे तक घूमता रहा। जिसके कारण श्रद्धालुओं के लिए रास्ते बंद कर दिए गए। उनके स्नान तक पर भी पाबंदियां लगा दी गई। अमित शाह का काफिला लगभग 6 घंटे तक महाकुंभ में रहा, इस दौरान सामान्य श्रद्धालुओं को संगम के घाटों पर नहीं जाने दिया गया। इसका आक्रोश भी नजर आया। सैकड़ों किलोमीटर दूर से महाकुंभ पहुंचे श्रद्धालुओं को संगम घाट तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ रहा है। जबकि वीवीआईपी लोगों के वाहन घाट तक पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं वीवीआईपी लोगों के वाहन महाकुंभ क्षेत्र में कहीं भी भ्रमण करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस वीवीआईपी कल्चर से महाकुंभ में पहुंच रहे श्रद्धालुओं के मन को गहरी ठेस पहुंची। दिन भर संगम घाट पर जाने के लिए इंतजार कर रहे श्रद्धालु शाम को भीड़ बढ़ने के कारण घाट तक नहीं जा सके। महाकुंभ प्रशासन ने कई घाटों को बंद कर दिया था। वायरल हो रहे कई वीडियो में श्रद्धालु घाट पर जाने के लिए भीड़ से उलझते भी नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं श्रद्धालुओं ने सीओ की गाड़ी को भी घाट की ओर जाने से रोक दिया। हजारों श्रद्धालु बैरिकेडिंग के बाहर खड़े होकर वीवीआईपी लोगों के जाने का इंतजार करते नजर आ रहे हैं। आस्था और श्रद्धा के महाकुंभ में वीवीआईपी लोगों के आगमन पर होने वाली व्यवस्था से सामान्य श्रद्धालु नाराज हैं। उनका कहना है कि वीवीआईपी लोगों के लिए अलग से घाट बनाया जाना चाहिए था, जिसका रास्ता भी अलग ही होना चाहिए था। जिससे सामान्य लोगों को किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। इस तरह की वीवीआईपी व्यवस्था से न केवल आम लोगों को गंभीर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है बल्कि वीवीआईपी लोगों को भी लोगों को परेशान करके महाकुंभ स्नान का कोई पुण्य फल प्राप्त नहीं होने वाला। बल्कि ऐसा करके वह पाप ही अर्जित कर रहे हैं। यदि वीवीआईपी लोगों को महाकुंभ स्नान का पुण्य फल अर्जित करना ही है तो अलग से व्यवस्था करें।