ई-रिक्शा से घबरा गया भाजपा संगठन
कांग्रेस ने सबसे समझा उपचुनाव का गणित
सपा ने भी गणित समझकर भर दी थी हुंकार
दंभ में डूबी भाजपा को देर से समझ आया यह गणित
गणित समझते ही ई-रिक्शा के समर्थन में उतरे भाजपा के बयानवीर
सूर्या बुलेटिन
गाजियाबाद। ई-रिक्शा ! जी हां, गाजियाबाद में शहर की सड़कों पर दौड़ने वाले ई-रिक्शा से भाजपा संगठन घबरा गया है। मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध और अधिकारियों की मनमानी से परेशान जनता को देखकर भी चुनाव में जीत पक्की मानने वाला भाजपा संगठन ई-रिक्शा चालकों की परेशानी से शहर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में हार की आशंका से घबरा गया है। भाजपा संगठन ई-रिक्शा चलाने वालों और इ-रिक्शा मालिकों की मान मनोव्वल में जुट गया है। यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि भाजपाई खुद कह रहे हैं और भाजपा संगठन की ओर से किए जाने वाले कार्य और आने वाले बयान इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि संगठन ई-रिक्शा मालिकों और चालकों की नाराजगी से घबराया हुआ है। भाजपा संगठन की धबराहट इस बात से और ज्यादा बढ़ गई है कि ई-रिक्शा संगठन का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो रहा है। चलिए इस पूरे मुद्दे पर कुछ विस्तार से बात करते हैं।
शहर की सड़कों पर लगने वाले जाम से शहर की जनता बुरी तरह से त्रस्त है। गाजियाबाद को पुलिस कमिश्नरेट बने हुए दो साल हो चुके हैं, लेकिन शहरवासियों को जाम के झाम से निजात नहीं मिल सकी है। दो साल के लंबे सर्वे, आंकलन और निगरानी के बाद पाया गया कि सड़कों पर बेतरतीब दौड़ने वाले ऑटो और ई-रिक्शा जाम के प्रमुख कारण बन रहे हैं। सड़कों के किनारे खड़ी होने वाली पूंजीपतियों की कारों से जाम नहीं लगता।
खैर! माना गया कि ऑटो और ई-रिक्शा जाम का प्रमुख कारण हैं तो अब जिन सड़कों पर सबसे ज्यादा जाम रहता है, उनसे ई-रिक्शा को हटाया जाए। गाजियाबाद पुलिस कमिश्नरेट के पहले और दबंग कमिश्नर ने सबसे पहले हापुड़ रोड को ई-रिक्शा से मुक्त करने का निर्देश दिया। पुलिस और ट्रैफिक विभाग का अमला जुट गया कमिश्नर के निर्देश का पालन करने में। हापुड़ रोड पर ई-रिक्शा का संचालन बंद हो गया। कुछ अखबरों ने इसे खूब बढ़ा चढ़ाकर छापा और पुलिस कमिश्नर के इस निर्णय को लेकर जमकर कसीदे पढ़े गए। इसके बाद अंबेडकर रोड पर ई-रिक्शा संचालक को बंद करने की तैयारी शुरु कर दी गई। कुछ अखबारों ने इसे भी खूब वाहवाही के साथ छापा। कहा गया कि शहर की प्रमुख सड़कों को जाम से मुक्त करने के लिए पुलिस कमिश्नर शानदार काम कर रहे हैं। शहर की सड़कों पर दो हजार से भी ज्यादा ई-रिक्शा दौड़ रहे हैं। उनसे दो हजार परिवारों का पालन-पोषण होता है। दो हजार परिवार बहुत छोटी संख्या है, लेकिन उन दो हजार परिवारों और उनसे जुड़े परिवारों में कम से कम 50 हजार मतदाता भी हैं। अधिकांश ई-रिक्शा मालिक, ई-रिक्शा किराए पर लेकर चलाने वाले चालक और उनसे जुड़े मतदाता गाजियाबाद शहर विधानसभा क्षेत्र से हैं। कांग्रेस ने यह गणित समझ लिया और शहर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को देखते हुए ई-रिक्शा चालकों के समर्थन में उतर आई। कांग्रेस के समर्थन से ई-रिक्शा चालकों ने अंबेडकर रोड पर रैली निकाली, जिससे जाम लग गया। अब पुलिस और ट्रैफिक विभाग के अधिकारियों के होश उड़ गए। शुरुआती कार्रवाई में पुलिस ने ई-रिक्शा चालकों को समझा बुझाकर जाम खुलवाया और शहर में किसी भी सड़क पर ई-रिक्शा संचालन प्रतिबंधित नहीं करने का वादा किया। हालांकि चुपके से रैली निकालने वाले ई-रिक्शा चालकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया, 7 लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया। वीडियो के आधार पर अन्य की पहचान की जा रही है औऱ उनकी भी गिरफ्तारी होगी। बहरहाल, ई-रिक्शा चालकों की संख्या के और मतदातओं के गणित को समाजवादी पार्टी ने भी समझ लिया। समाजवादी पार्टी ने तुरंत ही ई-रिक्शा चालकों के पक्ष में बड़ी रैली करने की घोषणा कर दी। अब, यहां से भाजपा में बैचेनी होना शुरु हो गई। दंभ में डूबे भाजपा संगठन को मतदाताओं का गणित समझने में खासी देर लगी। क्योंकि भाजपा तो गाजियाबाद सीट को बपौती मानती हैं, जनता के साथ कुछ भी हो रहा हो, लेकिन वोट तो भाजपा को ही देगी, ऐसा भाजपा संगठन का दृढ़ विश्वास है। ऐसा विश्वास हो भी क्यों नहीं, क्योंकि महंगाई, भ्रष्टाचार, अधिकारियों की मनमानी और अपराधों से जूझने के बाद भी जिले की जनता भाजपा प्रत्याशी को लाखों वोटों को मार्जन से जितवाती जो आ रही है। हालांकि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूरे देश में झटका लगा है। देश में गठबंधऩ की सरकार बनी है। इसका प्रभाव पूरी पार्टी पर भी पड़ा है। दंभ और अहं में आकंठ डूबे भाजपा नेता जनता को जनार्दन वाला सम्मान देने का थोड़ा बहुत प्रयास तो कर ही रहे हैं, लेकिन अभी दंभ पूरी तरह से टूटा नहीं है तो सम्मान भी पूरी तरह से नहीं दिया जा रहा है। अब गाजियाबाद की सदर सीट पर विधायक का उपचुनाव होना है और भाजपा की हालत पहले जैसी नहीं है। दूसरी चुनौती यह भी है कि उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को पहले से ज्यादा वोटों से जितवाया जाए जिससे लोकसभा चुनावों में हुई किरकिरी की कसक को कुछ कम किया जा सके। हालांकि गाजियाबाद के साथ ऐसा नहीं है, यहां से लोकसभा चुनाव में जीतने वाले भाजपा के प्रत्याशी भले ही पूर्व सांसद की जीत का रिकॉर्ड न तोड़ पाए हों, लेकिन जीत लाखों के अंतर से तो हुई है। सपा और कांग्रेस का गठबंधन भाजपा को पटखनी देने में जुटा ही है। अब भाजपा संगठन को जब ई-रिक्शा का गणित समझ और यह भी समझ आया कि आने वाले उपचुनाव में नुकसान हो सकता है तो भाजपा गाजियाबाद संगठन के मुखिया ने बयान जारी किया कि ई-रिक्शा चालकों का उत्पीड़न सहन नहीं किया जाएगा। ई-रिक्शा उनकी रोजी रोटी का एकमात्र जरिए है, इसलिए हमने पुलिस कमिश्नर से मुलाकात की और शहर की सड़कों पर ई-रिक्शा से संचालन पर लगाए गए प्रतिबंध को वापस लेने का दबाव बनाया। वैसे तो भाजपा गाजियाबाद संगठन के मुखिया भी यह बात जानते हैं कि गाजियाबाद के पुलिस कमिश्नर जब जिले में मौजूद कैबिनेट मंत्री की नहीं सुनते तो उनकी क्या सुनेंगे और क्या मानेंगे, लेकिन ई-रिक्शा के गणित के चलते उन्होंने यह बयान तो जारी कर ही दिया। फिर भले ही उन्होंने पुलिस कमिश्नर से मुलाकात की या नहीं, लेकिन हम मान लेते हैं कि उन्होंने मुलाकात की और दबाव भी बनाया और उनके दबाव बनाने पर पुलिस कमिश्नर ने ई-रिक्शा संचालन को लेकर लगाए गए प्रतिबंध वापस भी ले लिए। लेकिन, ई-रिक्शा चालकों को यह बात कौन समझाए, उन्होंने तो प्रतिबंध को वापस लिए जाने को लेकर कांग्रेस के महानगर अध्यक्ष विजय चौधरी का सम्मान कर दिया। ई-रिक्शा चालकों के समर्थन में सबसे पहले आने वाले विजय चौधरी ही थे और ई-रिक्शा चालकों के सम्मान के असली हकदार भी वही हैं। अब यदि भाजपा संगठन को अपनी साख बचानी है तो शहर की सड़कों को जाम से मुक्ति दिलवाने के लिए सड़कों के किनारे खड़ी होने वाली महंगी और चमचमाती गाड़ियों के खिलाफ पुलिस कमिश्नर पर दबाव बनाएं। क्योंकि उन चमचमाती गाड़ियों के कारण ही सड़कें संकरी हो रही हैं और जाम की परेशानी हो रही है। लेकिन, भाजपा संगठन ऐसा करेगा नहीं, क्योंकि जो चमचमाती गाड़ियां सड़कों को संकरा कर रही हैं, उनमें से अधिकांश तो संगठन से जुड़े लोगों और पूंजीपतियों की ही हैं।