मानसून में स्क्रब टाइफस और लेप्टोस्पायरोसिस भी करता है परेशान
बारिश बाद संक्रमण का अधिक होता है खतरा
सूर्या बुलेटिन
गाजियाबाद। मानसून के दौरान जिला स्वास्थ्य विभाग को डेंगू मलेरिया के अलावा स्क्रब टाइफस व लेप्टोस्पायरोसिस से भी निपटना होगा। बीते कई वर्ष से इनके मामले मामले सामने आ रहे हैं। बीते वर्ष स्क्रब टाइफस के 15 व लेप्टोस्पायरोसिस के 3 मामले सामने आए थे। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग की मानें तो इस वर्ष अभी तक डेंगू के 4 व मलेरिया के 8 मरीज सामने आ चुके है। हालांकि फिलहाल जिले में स्क्रब टाइफस व लेप्टोस्पायरोसिस का कोई मामला सामने नहीं आया।
बारिश के दौरान संचारी रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसे लेकर एक जुलाई से 31 जुलाई तक संचारी रोग नियंत्रण अभियान चलाया गया। जिसमें डेंगू-मलेरिया अन्य रोगों के प्रति जागरूक किया गया। बीते वर्ष डेंगू के रिकॉर्ड 1261 मरीज सामने आए थे। इस वर्ष भी डेंगू का प्रभाव का प्रभाव अधिक न हो इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने जून माह से ही तैयारी शुरू कर दी गई थी। इसके अलावा बीते कई वर्ष डेंगू-मलेरिया के अलावा स्क्रब टाइफस और लेप्टोस्पायरोसिस संक्रमण की चपेट में भी आए थे। विशेषज्ञों की मानें तो स्क्रब टाइफस कीट के काटने से होने वाली संक्रामक बीमारी है। स्क्रब टाइफस के केस ज्यादातर ग्रामीण या जंगली क्षेत्रों में देखे जाते रहे है। जबकि लेप्टोस्पायरोसिस एक जीवाणु जनित रोग है जो मनुष्यों और जानवरों दोनों को प्रभावित करता है। यह जीनस लेप्टोस्पाइरा नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। भारी बारिश या बाढ़ के बाद इससे संक्रमण का खतरा अधिक होता है। लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी की गंभीर स्थिति में इसके कारण मृत्यु का खतरा 10-15 फीसदी के बीच हो सकता है। जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ. आरके गुप्ता का कहना है कि डेंगू, मलेरिया समेत बारिश के बाद होने वाले रोगों के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। जांच में लार्वा मिलने पर एंटी लार्वा दवा का भी छिडक़ाव कराया जा रहा है।
गंभीर रोग है स्क्रब टाइफस
डॉक्टरों के अनुसार स्क्रब टाइफस पिस्सू जैसे कीड़े के काटने से होता है। जिसका पता भी नहीं चलता, इसका पता तब चलता है जब पूरे शरीर की गौर से जांच की जाए। कीड़े के काटने के लगभग 10 दिन के भीतर मरीज को वायरल जैसा बुखार आता है और सिर में दर्द होता है। सीनियर फिजिशियन डॉ. वीबी जिंदल बताते हैं कि पिस्सू जैसे कीड़े में ओरेंटया त्सुत्सुगुमाशी नामक बैक्टीरिया होता है। इस बैक्टीरिया के संक्रमण से ही स्क्रब टाइफस होता है। संक्रमण बढ़ने पर यह मरीज के दिल, दिमाग, फेफड़े और लिवर के साथ ही शरीर से सभी ऑर्गन पर प्रभाव डालता है। इस बीमारी की सबसे खराब स्टेज बुखार का दिमाग में पहुंचना होती है, जिसमें मरीज बेहोश हो जाता है और मरीज की मौत भी हो सकती है। डॉ. जिंदल के अनुसार स्क्रब टाइफस की पहचान शुरुआती दौर में नहीं हो पाती है। कीड़ा जिस स्थान पर काटता है वहां काले रंग का धब्बा (इस्चार) बन जाता है। जो डॉक्टर्स इस बीमारी के बारे में जानते हैं वे मरीज के कपड़े उतरवाकर इस्चार को तलाशते हैं। इस्चार मिलने पर मरीज की कई पैथोलॉजिकल जांच करवाई जाती हैं। अन्यथा डॉक्टर भी इसे सामान्य वायरल फीवर मानकर ही उपचार करते रहते हैं और रोग बढ़ता रहता है।
मानसिक रोगी भी बना सकता है लेप्टोस्पायरोसिस
एक्सपर्ट बताते हैं यह बीमारी जानवरों से इंसानों ने आसानी से फैल जाती है। इसका प्रमुख कारण है जानवरों के मल-मूत्र में होने वाला बैक्टीरिया। बीमारी होने पर तेज बुखार और त्वचा पर रैशेज हो जाते हैं जो 15 से 25 दिन तक बन रह सकते हैं। जिला सर्विलांस अधिकारी और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. आरके गुप्ता बताते हैं कि जानवरों में बहुत सारे बैक्टीरिया और विषाणु होते हैं। अमूमन जानवरों में होने वाली कोई बीमारी इंसानों में आसानी से देखने को नहीं मिलती, लेकिन लेप्टोस्पायरोसिस ऐसी बीमारी है जो जानवरों से इंसानों में आसानी से हो जाती है। यह बीमारी बैक्टीरियल संक्रमण के कारण होती और इसका प्रभाव 3 से 5 दिन में देखने को मिलता है। बीमारी होने पर इसका प्रभाव लंबे समय तक रह सकता है, लेकिन 20 से 25 दिन तक सामान्य तौर पर उपचार चलता है। इस बीमारी में तेज बुखार, सिर में दर्द, स्किन पर रैशेज, आंखे लाल होना, लूज मोशन या उल्टी लगना और भूख में कमी होना जैसे लक्षण उभरते हैं। इस बीमारी का उपचार एंटीबायोटिक दवाओं से होता है। उपचार में देरी या उपचार बीच में छोड़ देने से बीमारी गंभीर हो सकती है और उसके काऱण मानसिक रोग, फेफड़ों के रोग और गुर्दे भी फेल हो सकते हैं।
- बीते तीन वर्ष की स्थिति
वर्ष स्क्रब टाइफस लेप्टोस्पायरोसिस
2021 39 00
2022 95 04
2023 15 03