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वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025: पारदर्शिता का दावा, विवादों की आग”

सूर्या बुलेटिन नई दिल्ली, 4 अप्रैल 2025: वक्फ बोर्ड और उससे जुड़े कानून पिछले कुछ समय से भारतीय राजनीति और समाज में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। हाल ही में, 4 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 राज्यसभा में पारित हो गया, जिसके पक्ष में 128 वोट पड़े और विरोध में 95 वोट दर्ज किए गए। इससे पहले यह विधेयक लोकसभा से भी मंजूरी प्राप्त कर चुका था। इस संशोधन के साथ ही वक्फ बोर्ड के प्रबंधन, पारदर्शिता और कार्यप्रणाली में बड़े बदलावों की उम्मीद की जा रही है। लेकिन यह विधेयक जितना समर्थन प्राप्त कर रहा है, उतना ही विवाद भी खड़ा कर रहा है। विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने इसे असंवैधानिक और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है, जबकि सरकार इसे मुस्लिम समुदाय के हित में एक कदम बता रही है। इस खबर में हम वक्फ बोर्ड की उत्पत्ति, इसके मौजूदा स्वरूप, नए संशोधन और इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

बोर्ड क्या है?

वक्फ एक इस्लामिक परंपरा है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को धार्मिक, शैक्षिक या परोपकारी कार्यों के लिए समर्पित कर देता है। भारत में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करने के लिए वक्फ बोर्ड का गठन किया गया है। यह बोर्ड वक्फ अधिनियम 1995 के तहत कार्य करता है, जिसे समय-समय पर संशोधित किया गया है। देश भर में लगभग 30 राज्य वक्फ बोर्ड हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों में वक्फ संपत्तियों की देखरेख करते हैं। इन संपत्तियों में मस्जिदें, कब्रिस्तान, मदरसे और अन्य धर्मार्थ संस्थाएं शामिल हैं। अनुमान के मुताबिक, भारत में वक्फ बोर्ड के पास करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन है, जो इसे रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद तीसरा सबसे बड़ा जमीन मालिक बनाती है।

 वक्फ अधिनियम का इतिहास

वक्फ को नियंत्रित करने वाला पहला कानून 1913 में ब्रिटिश शासन के दौरान लागू हुआ था। इसके बाद 1954 में स्वतंत्र भारत में वक्फ अधिनियम पारित किया गया। 1995 में इसे व्यापक रूप से संशोधित किया गया, जिसके तहत वक्फ बोर्ड को अधिक अधिकार दिए गए। 2013 में हुए एक और संशोधन ने बोर्ड को संपत्तियों पर दावा करने की असीमित शक्तियां प्रदान कीं, जिसके बाद कई विवाद सामने आए। सरकार का कहना है कि इन शक्तियों का दुरुपयोग हुआ और वक्फ बोर्ड पर माफिया तत्वों का कब्जा हो गया। इसी को आधार बनाकर वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 लाया गया।

 वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025: प्रमुख बदलाव

नए विधेयक में कई बड़े बदलाव प्रस्तावित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना बताया जा रहा है। इनमें से कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं:

1. ‘वक्फ बाय यूजर’ की अवधारणा खत्म: पहले कोई संपत्ति जो लंबे समय से धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए उपयोग में थी, उसे वक्फ घोषित किया जा सकता था। अब इस प्रावधान को हटा दिया गया है।

2. सेक्शन 40 का उन्मूलन: पहले वक्फ बोर्ड बिना किसी सत्यापन के किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता था। इस धारा को हटाने से बोर्ड की मनमानी पर लगाम लगेगी।

3. गैर-मुस्लिम सदस्यों की भागीदारी: केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना अनिवार्य किया गया है। इसके साथ ही बोर्ड में महिलाओं और विभिन्न मुस्लिम समुदायों (शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी) का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा।

4. संपत्ति सर्वेक्षण में बदलाव: पहले सर्वे कमिश्नर वक्फ संपत्तियों का सर्वे करते थे, लेकिन अब यह जिम्मेदारी कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर को दी गई है।

5. केंद्रीय पोर्टल और डेटाबेस: सभी वक्फ संपत्तियों का विवरण छह महीने के भीतर एक केंद्रीय पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य होगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।

6. लेखा परीक्षा: सालाना 1 लाख रुपये से अधिक आय वाली वक्फ संस्थाओं की लेखा परीक्षा राज्य सरकार द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षकों से करानी होगी।

सरकार का पक्ष

केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने विधेयक को पेश करते हुए कहा कि यह मुस्लिम समुदाय के हित में है। उनका दावा है कि वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन की शिकायतें लंबे समय से आ रही थीं। रिजिजू ने कहा, “भारत में अल्पसंख्यकों के लिए इससे सुरक्षित जगह नहीं है। यह विधेयक गरीब मुस्लिमों, महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए है।” गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसे समर्थन देते हुए कहा कि कांग्रेस ने पहले वक्फ कानून को तुष्टिकरण के लिए बनाया था, लेकिन अब इसे संविधान के दायरे में लाया गया है।

 विपक्ष का विरोध

विपक्षी दलों ने इस विधेयक को असंवैधानिक करार दिया है। कांग्रेस, टीएमसी, सपा और आप जैसे दलों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा, “यह संविधान पर आघात है। सरकार मुस्लिमों के अधिकार छीनना चाहती है।” ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसे खारिज करते हुए कहा कि यह वक्फ की संपत्तियों को कमजोर करने की साजिश है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे देश को बांटने वाला कदम बताया और कहा कि उनकी सरकार इसे निष्प्रभावी करने के लिए भविष्य में कदम उठाएगी।

जनता और संगठनों की प्रतिक्रिया

देश भर में इस विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन देखने को मिले। कई जगहों पर मुस्लिम समुदाय ने काली पट्टियां बांधकर नमाज अदा की। सूफी संत इंतेसाब कादिरी ने इसे समर्थन देते हुए कहा कि इससे वक्फ माफिया पर लगाम लगेगी, लेकिन ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे खारिज कर दिया। जेडीयू जैसे कुछ सहयोगी दलों में भी असंतोष की खबरें हैं। जेडीयू के महासचिव गुलाम रसूल ने कहा कि वे मुस्लिम संगठनों की बैठक बुलाएंगे।

प्रभाव और भविष्य

इस विधेयक के पारित होने से वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली में बड़े बदलाव आएंगे। पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन इसके साथ ही कानूनी चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं। मुस्लिम संगठनों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तनाव को देखते हुए पुलिस ने फ्लैग मार्च निकाला है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर लंबे समय तक प्रभाव डालेगा।

संभावनाए

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 एक ऐसा कदम है, जो सुधार और विवाद के बीच संतुलन बनाता नजर आता है। सरकार इसे पारदर्शिता और समावेशिता का प्रतीक मान रही है, जबकि विपक्ष और कुछ संगठन इसे धार्मिक अधिकारों पर हमला बता रहे हैं। आने वाले दिनों में इसका असली प्रभाव सामने आएगा, जब यह लागू होगा और समाज पर इसका असर दिखेगा। तब तक यह चर्चा का विषय बना रहेगा।

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