पेड़ काट कर कब्जा होता या लगाकर
(सूर्या बुलेटिन) नोएडा की सोसाईटी में हुए झगड़े की जड़ पार्क में पेड़ लगाना था, लेकिन जरा सा विवाद इतना बढ़ गया कि मामला थाने और मीडिया तक पहुँच गया।हालाँकि श्रीकांत त्यागी को महिला के साथ बदसलूकी नही करनी थी ये महिलाओ के सम्मान का सवाल है।दूसरी तरफ महिला कुछ भी कहे या करे उन्हें आजादी है क्योंकि उनके पास महिला आयोग जो है।हमारे यहाँ आज कल पार्टिया और मीडिया माहौल के हिसाब से चलती है।खास कर बीजेपी पार्टी,हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने माईक उठाकर बोल दिया त्यागी से पार्टी का कोई लेना देना नही है।सौ बात की एक बात ये की यदि पार्क में पेड़-बोधे लगाए भी जा रहे है तो उससे कब्जा कैसा।कब्जा तो पेड़ काट कर किया जाता है,और यदि कोई बात भी थी तो इसे सामाजिक स्तर पर निपटाया जा सकता था।ऐसा लगता है कि शायद त्यागी बंधु के गलती करने का इंतजार ही हो रहा था मौका मिलते ही वीडियो के साथ विरोध जताया,वही उपरोक्त सकस से भी वो गलती हो गयी जिसका विरोधियो को इंतजार था।जो हुआ दोनों पार्टियों के लिए बहुत ही दुःखद है।इससे साफ नजर आता है कि फ्लेट कल्चर भी भारतीय समाज व संस्कृति के लिए अभिशाप बनता जा रहा है।अब सारी गलती उपरोक्त की है लेकिन बुद्धिजीवियों को सोचना चाहिए कि कब्जा पेड़ लगाकर नही दीवार लगाकर किया जाता है,रही बात पुरानी रंजिश की उसको भी बैठ कर निपटाया जा सकता था।रही बात पुलिस की तो यदि सिकायत दर्ज हुई है तो पुलिस अपना काम करेगी।