गाज़ियाबाद

यशोदा हॉस्पिटल ने दिखाई दरियादिली….

यदि यशोदा सुपरस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में गाजियाबाद में होता तो जा सकती थी स्वामी नरेशानंद की जानयति नरसिंहानंद सरस्वती

सैकड़ों मरीज मौत के मुंह में जाने से बच पाते है यशोदा हॉस्पिटल के कारणअनिल यादव

सूर्या बुलेटिन (गाजियाबाद) आज गाजियाबाद के प्रत्येक नागरिक को इस बात पर फख्र होना चाहिये कि उसके शहर में यशोदा सुपरस्पेशिएलिटी जैसा अत्याधुनिक सुविधाओं और विशेषज्ञ डॉक्टरों से लैस अस्पताल है। इस अस्पताल में दुनिया की ऐसी कोई बीमारी नहीं है जिसका इलाज न होता हो। यही नहीं इस हॉस्पिटल से अमेरिका, बांग्लादेश, ब्रिटेन, खाड़ी व अन्य दूसरे देशों के डॉक्टर कॉन्फ्रेंस करके जानकारी प्राप्त करते हैं। समय-समय पर यशोदा हॉस्पिटल के विशेषज्ञों की सलाह भारत के अनेक बड़े शहरों के डॉक्टर लेते रहते हैं। दुनिया में किसी भी बीमारी के लिए कोई उपचार विधि, उपचार यंत्र का ईजाद होता है तो वो इस अस्पताल में जल्द से जल्द उपलब्ध हो जाता है। इसी वजह से यहां के डॉक्टर हमेशा वर्ल्ड मेडिसन पैटर्न में अपडेट रहते हैं। इसका लाभ गाजियाबाद ही नहीं बल्कि एनसीआर के अनेक शहरों के वाशिन्दों को मिलता है।

यशोदा हॉस्पिटल के डॉक्टरों की काबिलियत यानी उनकी विशेषज्ञता की बात की जाये तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है। यहां के डॉक्टरों की विशेषज्ञता व स्टाफ की लगन से प्रतिवर्ष सैकड़ों मरीज मौत के मुंह से लौट आते हैं। इस अस्पताल से ऐसे-ऐसे मरीज ठीक होकर अपने घर जाते हैं जिनके तीमारदार अपने प्रियजन का अंतिम समय समझ कर यहां लाते हैं और मरीज के स्वस्थ होने पर यहां के डॉक्टरों को साक्षात भगवान कह कर उनकी तारीफ करते हैं। इस बात का साक्षात अनुभव उस समय हुआ जब डासना देवी मंदिर में रात को हुए हमले में बिहार से आये साधु नरेशानन्द को यहां के डॉक्टरों ने कमाल का इलाज करते हुए मौत के मुंह से निकाल लिया।

डॉ. दिनेश अरोड़ा की दरियादिली की हो रही तारीफ

अनिल यादव ने जब अपनी बात डॉ. दिनेश अरोड़ा तक पहुंचाई तो वह उनके व्यवहार से अचम्भे में रह गये। उन्हें उस समय महसूस हुआ कि जो लोग डॉ. दिनेश अरोड़ा के बारे में जो कह रहे थे वो सच ही निकला। अनिल यादव ने जब सारी हकीकत बताई कि मंदिर का प्रबंधन अपने ओर से पूरा प्रयास कर रहा है लेकिन एक परदेशी साधु के साथ तीमारदारी व दवाई की व्यवस्था तो की जा सकती है लेकिन उपचार में लगने वाली भारी भरकम राशि की व्यवस्था नहीं की जा सकती है। इस बात पर गंभीरता से विचार करने के बाद डॉ. दिनेश अरोड़ा ने अस्पताल प्रबंधन को साधु के उपचार में लगभग साढ़े तीन लाख रुपये की छूट देने का फरमान जारी कर दिया।

यशोदा सुपरस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल की तारीफ यहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर-दूर तक की जाती है। इसका कारण यह है कि इस हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ. दिनेश अरोड़ा की दरियादिली। डॉ. दिनेश अरोड़ा को मानवता का पुजारी कहा जाये तो गलत नहीं होगा। पेशे से डॉक्टर होने और अस्पताल के भारी भरकम खर्च के बावजूद एकदम साधारण जिन्दगी में विश्वास रखने वाले डॉक्टर दिनेश अरोड़ा का दिल गरीबों की हालत देखकर पिघलता है। इस बात के भी साक्षात् दर्शन साधु नरेशानन्द के उपचार के दौरान हो गये। साधु नरेशानन्द को जब हमले के बाद यशोदा हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था तो अस्पताल के प्रबंधन को कुछ गलतफहमी हो गयी थी। उनकी नजर में डासना मंदिर बहुत ही पैसे वाला है। वहां अकूत सम्पत्ति है। हमेशा चर्चा में रहने वाले मंदिर के महंत यति नरसिंहा नन्द भारी सुरक्षा बलों से घिरे रहते हैं।लेकिन वास्तव में ऐसा नही है,विवादों में घिरे रहने के कारण मंदिर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नही है।इन सब बातों को देखकर साधु नरेशानन्द के उपचार का खर्च भी दूसरे लोगो की तरह से ही रख्खा गया।उपचार एक वीआईपी पर्सन की तरह किया गया। जब अस्पताल प्रबंधन ने अपना वीआईपी ट्रीटमेंट किया तो उसका खर्चा भी वीआईपी जैसा आया। इस खर्चे को देखकर परदेशी साधु नरेशानन्द के उपचार करा रहे लोगों में खलबली मच गयी और उन्होंने इसका विरोध भी जताया। इस बात की जानकारी मंदिर के मुख्य प्रबंधक अनिल यादव को भी दी गयी। उन्हें भी नागवार गुजरा। उन्होंने जब इस बात की चर्चा शहर के गणमान्य लोगों से की तो सभी ने दिनेश अरोड़ा जी के बारे में कुछ सत्य बातें बतार्इं। अनिल यादव से अपनी बात डॉ. दिनेश अरोड़ा तक पहुंचाने के लिए कहा।

महंत यति नरसिंहानन्द सरस्वती महाराज, अनिल यादव, स्वामी नरेशानन्द, मंदिर के अन्य सेवादार सहित जिसने भी डॉ. दिनेश अरोड़ा की दरियादिली की यह दास्तान सुनी। सभी ने मुक्त कंठ से डॉ. दिनेश अरोड़ा की तारीफ ही नहीं की बल्कि उनके प्रति आभार व्यक्त किया।

डॉ. रजत अरोड़ा की सेवाओं को किया जा रहा है याद

साधु नरेशानन्द जी के उपचार में यशोदा सुपरस्पेशिएलिटी के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. रजत अरोड़ा का जो अपूर्व सहयोग रहा है। उसको लेकर सभी उनका गुणगान कर रहे हैं। साधु नरेशानन्द जी के उपचार में किस तरह की दवाएं चल रहीं थीं, किस तरह की दवाएं चलनी चाहिये थीं। उनके जीवन को बचाने के लिए हर समय डॉ. रजत अरोड़ा ने पूरा ध्यान रखा। साधु नरेशानन्द के जीवन से जब तक खतरा टला नहीं तब तक डॉ. रजत अरोड़ा ने उनके उपचार में विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश दिये। उनके बारे में अपने मेडिकल स्टाफ उपचार कर रहे डॉक्टरों व पैरामेडिकल स्टाफ के साथ अच्छी तरह तालमेल बिठाये रहे। उनकी इस सक्रियता से जब साधु नरेशानन्द के जीवन से खतरा पूरी तरह से टल गया तो डॉ. रजत अरोड़ा की सभी ने मुक्त कंठ से सराहना की। यहां तक कहा कि साधु के जीवन को बचाने में डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ के साथ डॉ. रजत अरोड़ा की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

डॉ. आशीष गौतम धरती के भगवान से कम नहीं हैं

यशोदा सुपरस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के सीनियर सर्जन डॉ. आशीष गौतम और उनकी टीम की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम होगी। हमले के समय साधु नरेशानन्द की हालत मरणासन्न थी। सभी लोगों ने उनके जीवित बचने की उम्मीद छोड़ दी थी। यशोदा अस्पताल में भर्ती कराने के बाद यह लग रहा था कि साधु नरेशानन्द एक-दो दिन के मेहमान हैं,कभी भी इनकी सांस टूट सकती है। लेकिन उनके कटे हुए गले और फटे हुए पेट से आंतें व अन्य अंगों के बाहर निकलने के बाद जिस तरह से डॉ. आशीष गौतम ने उनका आपरेशन किया और उसके बाद उपचार किया। वो किसी भगवान से कम नहीं कहे जा सकते हैं। उन्होंने साधु नरेशानन्द को मौत के मुंह से जिस तरह बाहर निकाला है वो वास्तव में अपने आप में आश्चर्य है। डॉ. आशीष गौतम के साथ उनकी टीम में शामिल डॉ. नृपेन विश्नोई, डॉ. शोरबा गुप्ता ने भी साधु नरेशानन्द के उपचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। इस बात की तारीफ स्वयं साधु नरेशानन्द और उनकी सेवा में लगे डासना मंदिर के सेवादार स्वयं करते हैं।आशीषअग्रवाल की मेहनत का नतीजा है साधु का जीवन

डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ और दवाइयों से तो रोगी की जान बचती है लेकिन इसके लिए एक और चीज बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। वो है रोगी को समय पर सही उपचार। समय पर सही दवाएं, मरहम पट्टी, जांच-पड़ताल कराना बहुत बड़ा काम होता है। ये बात किसी रोगी का तीमारदार ही अच्छी तरह से बता सकता है। यशोदा अस्पताल में एडमिन मैनेजर आशीष अग्रवाल ऐसी महान हस्ती है, जिनकी जितनी तारीफ की जाये कम ही होगी। उसका कारण यह है कि आशीष अग्रवाल ने साधु नरेशानन्द के उपचार के समय पल-पल की जानकारी लेकर उनका उपचार प्रबंधन कराया। आशीष अग्रवाल ने परदेशी साधु नरेशानन्द का उपचार प्रबंधन ऐसा कराया जैसा कि कोई व्यक्ति अपने परिवार के रोगी का कराता है। कब दवाई देना, कब मरहम पट्टी होनी है, कब किस तरह का खाना देना है, इसके अलावा साधु नरेशानन्द के जल्द स्वस्थ होने के लिए क्या किया जाये, वो सभी काम आशीष अग्रवाल ने किये। यदि यह कहा जाये कि आज साधु नरेशानन्द इतनी विकट स्थिति के बाद इतनी जल्दी स्वस्थ हो रहे हैं, उसमें आशीष अग्रवाल की मेहनत है तो कोई गलत बात नहीं होगी।

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