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Home 25 आध्यात्म 25 योद्धाओं को सदैव हथियारों से लैस रहना चाहिए। – बाबा परमेन्द्र आर्य

योद्धाओं को सदैव हथियारों से लैस रहना चाहिए। – बाबा परमेन्द्र आर्य

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शस्त्र वीर व वीरांगनाओं के वास्तविक आभूषण होते हैं , योद्धाओं को सदैव हथियारों से लैस रहना चाहिए। – बाबा परमेन्द्र आर्य

 

सुर्या बुलेटिन(मोदीनगर)  बाबा परमेन्द्र आर्य ने कहा जिस तरह से सुहागिन स्त्रियां अपने गहनों से लगाव रखती है व गहनों से सजी-धजी रहतीं हैं । उसी तरह से वीर पुरूषों को व वीरांगना महिलाओं को हथियारों से लैस रहना चाहिए व हथियारों को अपने शरीर का अंग समझना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को अपनी व अपने परिवार की सुरक्षा करने का अधिकार है और सुरक्षा शस्त्रों के बल पर होती है । इसलिए सभी शस्त्रों के चलाने का प्रशिक्षण लेना चाहिए।

टेमपाल चौधरी ने अपने सम्बोधन में कहा प्राचीन काल में शस्त्र पूजन सभी मंदिरों में व प्रत्येक नगर व गांव में होता था। लेकिन जब से हिन्दू समाज ने शस्त्र पूजन करना छोडा है तभी से विधर्मियो से पिट रहा है। महाराजा सूरजमल अखाड़ा द्वारा शस्त्र पूजन कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यही है कि प्रत्येक हिन्दू के घर में हथियार हो और हिन्दू समाज शक्तिशाली बने।

चौधरी विनय नहरा जी ने कहा जिस तरह से किसान अपने कृषि यंत्रों की देखभाल करते हैं उसी तरह से हमें अपने शस्त्रों को जांच परख करते रहना चाहिए । यदि शस्त्रो की साफ-सफाई नहीं होती है तो खराब हो जाते हैं । शस्त्र पूजन के बहाने हम अपने हथियारों को जांच परख लेते हैं।

रामकुमार मित्तल जी ने अपने सम्बोधन में कहा हमारे सभी देवी-देवताओं के हाथों में शस्त्र है। हमें भी अपने अराध्य देवी-देवताओं से प्रेरणा लेकर शस्त्र धारण करने चाहिए और अपने देश व धर्म की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।

चौधरी अंजली आर्या ने कहा आदि काल में महिषासुर नामक राक्षस को मां दुर्गा ने आज ही के दिन मारा था और इस संसार को संदेश दिया था कि जब भी नारी के बच्चों या परिवार के किसी भी सदस्यो पर राक्षस हमला करेगा । तो नारी मां दुर्गा भवानी बनकर अपने परिवार की सुरक्षा करेंगी और आपने शत्रुओं का विनाश करेंगी।

विजय दशमी के दिन ही रामचंद्र जी ने उस समय के दुर्दांत राक्षस रावण का वध किया था।
विजय दशमी को हम रामचन्द्र जी की विजय के रूप में भी मनातें है । रामजी ने सीता माता को सकुशल लंका की अशोक वाटिका से मुक्त कराया था । रावण उस समय का सबसे शक्तिशाली राक्षस था । कोई भी राजा उसके अत्याचारों के खिलाफ नहीं बोलता था । जब जब भी पृथ्वी पर अत्याचार बढा है। राक्षसों की संख्या बढ़ी है तब तब शस्त्रधारी योद्धाओं ने उनका नाश किया । प्राचीन काल में हमारे यहां गुरुकुलो में शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दी जाती थी और प्रत्येक युवक व युवती को गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करनी अनिवार्य थी ।
प्रत्येक गांव व नगर में गुरूकुल होते थे । इस तरह सभी महिलाएं व पुरुष हथियारों को अच्छी तरह से चलाना जानतें थे। तभी हम विश्व गुरु कहलाते थे । जब से हमारी शिक्षा पद्धति से सेनिक शिक्षा को हटाया गया है। तब से हमारा पतन शुरू हो गया है । पुरे विश्व में सत्य सनातन वेदिक धर्म के अनुयाई थे लेकिन जब से हमने लड़ना छोड़ दिया है । हम घटते घटते भारत के एक छोटे से भू भाग में सिमटकर रह गए हैं और यहां पर भी सुरक्षित नहीं है। यदि हमें भारत में सत्य सनातन वेदिक धर्म के सिद्धांतों को जीवित रखना है और अपने परिवार को सुरक्षित रखना है तो हम सभी को प्राचीन हथियारों के साथ साथ आज के समय के आधुनिक हथियार भी चलाने सिखने पड़ेंगे  नहीं तो जिस तरह हम अफगानिस्तान, पाकिस्तान व कश्मीर से मिट गये है। यहां से भी मिटा दिए जायेंगे।

इस अवसर पर युवाओं ने तलवार बाजी व लाठी चलाकर दिखाईं। समाज मे अच्छा कार्य करने वाले युवाओं व युवतियों को सम्मान प्रतीक और तलवार भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम में राणा राम नारायण आर्य, रामकुमार मित्तल, सतेन्द्र पंवार , वीरांगना संजू चौधरी , डा. अरूण त्यागी , चौधरी ममता आर्या , सोनी राणा, विनय नहरा, सैदपुर से डब्बू , जयवीर , सचिन तेवतिया , विकास तेवतिया, जितेंद्र दोसा, अजय कलकल, धीरज नागर आदि उपस्थित रहे।

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