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काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद: HC ने खारिज की अंजुमन इंतेजामिया कमेटी की याचिका

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सूर्या बुलेटिन : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के विवादित स्थल का निरीक्षण करने के लिए एक अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति करने के दीवानी अदालत के आठ अप्रैल, 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका गुरुवार को खारिज कर दी

इस याचिका के जरिए वाराणसी की दीवानी अदालत के 18 अगस्त, 2021 के उस आदेश को भी चुनौती दी गई थी जिसके जरिए अदालत ने वाराणसी में विश्वेश्वर नाथ महादेव मंदिर में देवी देवताओं की पूजा संबंधी मामलों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. यह याचिका अंजुमन इंतेजामिया कमेटी की ओर से दायर की गई थी.

याचिकाकर्ता के वकील एसएफए नकवी और प्रदेश सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता बिपिन बिहारी पांडेय और अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी का पक्ष सुनने के बाद न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने यह याचिका खारिज कर दी.

दीवानी अदालत ने आठ अप्रैल, 2022 के आदेश के तहत अजय कुमार मिश्रा को अधिवक्ता आयुक्त के तौर पर नियुक्त किया था और मिश्रा को स्थल का निरीक्षण और वीडियोग्राफी कर अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपने को कहा था

अदालत ने 18 अगस्त, 2021 के आदेश में निर्देश दिया था, ‘‘याचिकाकर्ता को मां गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान, नन्दी जी की पूजा पाठ करने में कोई हस्तक्षेप न करे और न ही प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त करें.’’

अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति के सवाल पर अदालत ने कहा, ‘‘आयुक्त किसी भी तरह से प्रतिवादी याचिकाकर्ता के अधिकारों का हनन नहीं करता है. यदि अधिवक्ता आयुक्त की रिपोर्ट में कुछ भी ऐसा कहा जाता है जो प्रतिवादी को लगता है कि स्थान की स्थिति के वह विपरीत है तो वह आयुक्त की रिपोर्ट पर हमेशा आपत्ति कर सकता है जो साक्ष्य के आधार पर इस अदालत द्वारा निर्णय के लिए विचाराधीन होगा.’’

प्रतिवादी पक्ष के वकील द्वारा एक व्यक्ति विशेष को अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति पर आपत्ति पर अदालत ने कहा, ‘‘आठ अप्रैल, 2022 के आदेश को देखने से पता चलता है कि निचली अदालत ने इस बात को संज्ञान में लिया था कि इससे पूर्व नियुक्त दो अधिवक्ता आयुक्तों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई थी.’’

अदालत ने आगे कहा, ‘‘इन तथ्यों के मद्देनजर अदालत ने अपने विवेकाधिकार से अजय कुमार मिश्रा को अधिवक्ता आयुक्त नामित किया.’’

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा, ‘‘जो कुछ भी कहा गया है, उसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत इस अदालत का अधिकार क्षेत्र एक पर्यवेक्षक की भूमिका तक सीमित है. अदालत को यह मामला हस्तक्षेप के लायक नहीं लगता. इस प्रकार से यह याचिका खारिज की जाती है.’’

 

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