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बाबरी केस: जज सुरेंद्र यादव को ही फैसला सुनाने के लिए क्यों चुना गया

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बाबरी विध्वंस के समय भी अयोध्या में थे तैनात
जस्टिस एसके यादव का अयोध्या से है बहुत पुराना नाता

सूर्या बुलेटिन (लखनऊ)। लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने बुधवार को बाबरी ध्वंस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। बाबरी मस्जिद के ढांचे को 6 दिसंबर 1992 को गिराया गया था। सीबीआई कोर्ट के जज सुरेंद्र कुमार यादव ने 28 साल पुराने इस केस में फैसला सुनाया है। केस के 32 आरोपियों पर फैसला लिखने के साथ ही सुरेंद्र कुमार यादव अपने कार्यकाल से भी मुक्त हो गए हैं। 30 सितंबर शाम 5 बजते ही सुरेंद्र कुमार यादव रिटायरमेंट हो गये। हालांकि, सुरेंद्र यादव का कार्यकाल एक साल पहले ही पूरा हो गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस केस की सुनवाई पूरी करने और इस पर फैसला सुनाने के मकसद से उन्हें एक साल का विस्तार दे दिया था। उनके रिटायरमेंट की तारीख 30 सितंबर 2019 थी। एक और खास बात ये है कि सुरेंद्र कुमार यादव का अयोध्या से संबंध काफी पुराना रहा है। उनकी पहली तैनाती अयोध्या में ही हुई थी।
बाबरी विध्वंस 1992 में हुआ था। इससे दो साल पहले 8 जून 1990 को ही सुरेंद्र कुमार यादव ने बतौर मुनसिफ अपनी न्यायिक सेवा की शुरूआत की थी। सुरेंद्र कुमार यादव अपनी पहली नियुक्ति के बाद अयोध्या में 1993 तक रहे थे। अयोध्या में जब कारसेवकों और बीजेपी के बड़े नेताओं की मौजूदगी में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था, उस वक्त सुरेंद्र कुमार यादव की पोस्टिंग भी अयोध्या में ही थी और आज वो मौका आया है जब उन्होंने इस बड़े केस पर बतौर सीबीआई विशेष कोर्ट जज फैसला सुनाया है।

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