100 बात की एक बात, गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त
100 बात की एक बात, गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त
निर्वाचन के लिए घातक हो सकता है शक्ति का असंयमित होना
ओहदों के लिए दरबारों में जब, कदमों पर अना गिर जाती है कौमों के सिर झुक जाते हैं, चकरा के हया गिर जाती है।
जब हम केवल अपनी महत्वकांक्षाओं और लालच के समुद्र में तैरकर अपना स्वाभिमान अपने ही पैरों तले कुचल देते हैं। तब हमारी संपूर्ण कौम या संगठन का सिर तो झुक ही जाता है साथ ही सारी मान और प्रतिष्ठा खत्म हो जाती है। हाल ही में एक प्रेस वार्ता का वीडियो वायरल हो रहा है। जिसमें जिलाधिकारी गाजियाबाद इंद्र विक्रम सिंह पत्रकारों को संबोधित कर रहे हैं। उपरोक्त वीडियो भी उसी प्रेस वार्ता से किसी पत्रकार बंधु ने ही वायरल किया है और करता भी क्यों न। क्योंकि वीडियो में जिलाधिकारी की भाषा अमर्यादित ही नहीं बल्कि पत्रकारों के साथ धमकी भरे शब्दों का भी प्रयोग किया गया लेकिन, प्रेस वार्ता में बैठे किसी भी पत्रकार ने उसी वक्त जिलाधिकारी के अमर्यादित शब्दों का विरोध नहीं किया और चुपचाप सुनकर वापस चले आए। प्रेस वार्ता होने के बाद जब इस बात का कुछ पत्रकारों ने विरोध किया तो वीडियो वायरल हो गया। जिसके बाद कांग्रेस के यूथ ब्रिगेड ने एक्स (ट्वीटर) पर इसका विरोध जताया। फिर कानपुर के पत्रकारों ने जिलाधिकारी गाजियाबाद का विरोध प्रदर्शन करते हुए जिलाधिकारी गाजियाबाद के खिलाफ पुलिस आयुक्त कानपुर को ज्ञापन सौंपा और इसका खुलकर विरोध किया। जिसके बाद यूपी में कई जगह उपरोक्त घटना का पत्रकारों ने विरोध किया। निर्वाचन प्रक्रिया में जिलाधिकारी जिले में सर्व शक्तिमन होते है, लेकिन जब तक शक्ति संयमित रहती है तभी तक उसकी सृजनात्मक प्रवृति रहती है सभी उसका सम्मान करते हैं। जब शक्ति असंयमित हो जाती है तो वह केवल विनाश ही करती है। इसके कई उदाहरण हमारे सामने हैं। लोकतंत्र में शक्ति को संयमित रखने की जिम्मेदारी सरकार की है और निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान यह जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग निभाता है। निर्वाचन आयोग ने जिलाधिकारी गाजियाबाद के असंयमित शब्दों का संज्ञान लिया है अब प्रतीक्षा है निर्वाचन आयोग जिले के सर्व शक्तिमान अधिकारी को किस प्रकार संयमित करता है। क्योंकि यदि शक्ति असंयमित रहेगी तो निर्वाचन प्रक्रिया निष्पक्ष और निर्विवादित नहीं हो सकेगी। जो बात जिलाधिकारी गाजियाबाद ने कही है वह केवल निर्वाचन आयोग की बात का दोहराव है, जबकि निर्वाचन आयोग ने बेहद संतुलित और सभ्य शब्दों में इस बात को कहा था। 100 बात की एक बात यह कि गवाह चुस्त और मुद्दर्ई सुस्त। गाजियाबाद के ज्यादातर पत्रकारों ने शायद अपनी किसी महत्वकांक्षा के चलते खुलकर कोई विरोध नहीं जताया। पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी और देश में चौथे स्तंभ हैं। यदि पत्रकारों का यूं ही अपमान होने की प्रथा शुरु हुई तो मानो चौथा स्तंभ अब खतरे में है और पत्रकारिता के मायने खत्म हो जाएंगे।