सूर्या बुलेटिन : दिल्ली स्थित कुतुब मीनार परिसर में अब नमाज नहीं पढ़ी जा सकेगी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सख्ती दिखाते हुए साफ किया है कि कुतुब मानीर एक नॉन लिविंग मॉन्यूमेंट (निर्जीव स्मारक) है। इसके परिसर में किसी भी धार्मिक गतिविधियों के लिए पहले से ही मनाही है। यह बात आज एएसआई ने साकेत कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में भी कही है।
मीनार परिसर में पूजा के अधिकार को लेकर सुनवाई शुरू,
कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार को लेकर दिल्ली के साकेत कोर्ट में एक याचिका डाली गई है जिसमें 27 जैन और हिंदू मंदिरों के जीर्णोद्धार की मांग की गई है। अदालत में इस पर सुनवाई शुरू हो चुकी है।
मामले की सुनवाई शुरू होते ही याचिकाकर्ता जैन ने कहा कि एक बार कोई भगवान है तो वो हमेशा के लिए भगवान है। मंदिर के ध्वंस के बाद इसका चरित्र नहीं बदल जाएगा और न ही ये अपनी गरिमा खोएगा। मैं एक उपासक हूं। आज भी देवी-देवताओं की ऐसी छवियां हैं जो वहां देखी जा सकती हैं। मेरी याचिका पर अदालत ने पिछली सुनवाई में मूर्ति को संरक्षित करने की बात कही थी। वहां एक लौह स्तंभ भी है जो 1600 साल पुराना है।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है देवता हमेशा जीवित रहते हैं और अगर ऐसा है तो पूजा करने का अधिकार भी जीवित रहता है। इस पर अदालत ने कहा कि अगर देवता 800 साल तक बिना पूजा हुए जीवित रह सकते हैं तो उन्हें वैसे ही रहने दिया जाए।
अदालत ने आगे कहा कि, प्रश्न ये है कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार है, यह सांविधानिक है या अन्य कोई अधिकार है? मूर्ति का होना विवाद का विषय नहीं है। यहां प्रश्न पूजा के अधिकार को लेकर है। मेरा सवाल है कि कौन सा कानून इस अधिकार का समर्थन करता है? हम यहां ये बहस नहीं कर रहे कि वहां कोई मूर्ति है या नहीं। हम यहां सिविल जज के आदेश के खिलाफ बात कर रहे हैं।
अदालत ने आगे कहा, यह अपील गुण-दोष के आधार पर नहीं है। यहां एकमात्र सवाल ये है कि क्या याचिकाकर्ता को किसी कानूनी अधिकार से वंचित किया गया है? इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि हां संवैधानिक अधिकार को नकारा गया है। कोर्ट ने पूछा कैसे तो याची ने कहा आर्टिकल 25 के तहत। इस पर अदालत ने पूछा कि आपका मतलब है कि पूजा का अधिकार मौलिक अधिकार है? याचिकाकर्ता ने आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए कहा कि, भारत में 1000 साल पुराने कई मंदिर हैं, इसी तरह यहां भी पूजा की जा सकती है। निचली अदालत ने मेरे अधिकार का फैसला नहीं किया है. उनका फैसला गलत है।
साकेत में कोर्ट दाखिल किया हलफनामा
साकेत कोर्ट में दाखिल हलफनामे में अदालत ने कहा है कि कुतुब मीनार एक निर्जीव स्मारक है और इस पर किसी भी धर्म पूजा-पाठ के लिए दावा नहीं कर सकता। एएमएएसआर एक्ट 1958 के तहत किसी भी निर्जीव इमारत में पूजा शुरू नहीं की जा सकती। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी अपने 27 जनवरी 1999 के आदेश में ये बात कही है।
एएसआई के अधिकारियों के मुताबिक देशभर में ऐसे अनगिनत निर्जीव स्मारक हैं, जहां पर पूजा-पाठ, नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं है। इसके बावजूद कुतुब मीनार परिसर में नमाज पढ़ी जा रही थी। अब यहां नमाज पढ़ने वालों को ऐसा करने से मना किया गया है। पांच दिन से यहां नमाज बंद है।
एएसआई के अधिकारियों के मुताबिक बिना जानकारी के कुछ लोग कुतुब मीनार परिसर में नमाज पढ़ने की जिद कर रहे थे, ऐसे लोगों से अनुमति पत्र या इससे संबंधित दस्तावेज मांगा गया था। वे लोग कोई दस्तावेज नहीं दिखा पाए। उन्हें वापस भेज दिया गया।
अनुमति ही नहीं तो प्रतिबंध कैसा
एएसआई अधिकारियों ने साफ किया है कि एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक स्थल पर कानूनी तौर पर धार्मिक गतिविधि करने की अनुमति नहीं है। जब तक एएसआई ने किसी को ऐसा करने से नहीं मना किया और बात थी, लेकिन जब एएसआई ने फैसला कर लिया है, तो यहां धार्मिक गतिविधि करना गैरकानूनी है। ऐसा करने वालों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करेगी। इससे पहले फिरोजशाह कोटला स्मारक स्थल पर भी एएसआई ने नमाज पर रोक लगाई थी।